अर्ज़ी
अच्छा ही हुआ दिल टूट गया अच्छा ही किया जो तूने किया कहीं मन की कही सच हो जाती ना दिख पाता हमें अपना भला नादाँ है हम पूछे तुझसे वज़ह कमज़ोर भी है कहे तुझको बुरा कहीं मन की कही सच हो जाती चैन दिल का कहीं खो जाता इक बार फिर से लगा डूब गए ना दिल समझा क्या है तेरी रज़ा कहीं मन की कही सच हो जाती मंजिल का मिटता नामोंनिशां इक बार फिर से आज भटकें है बक्श कर्मों को फिर हाथ बढा ना मन मर्जी चलने देना सुन अर्ज़ अपनी साथ रहना खड़ा यही अर्ज़ अपनी ...