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कह गए

  जो ना कहना था, हम कह गए बिना सुने, फिर भी, वो रह गए ना मन की मन में रही, ना बयां की गई   आँखों से, कह भी दिया मगर  अनसुने,  अल्रफ़ाज़ रह गए जो ना कहना था, हम कह गए   बादल जैसे छटने लगे है धुप जैसे खिलने को है शाम का किया , क्यूँ इंतज़ार अपने ज़ज्बात, बारिश में बह गए जो ना कहना था, हम कह गए   जिधर देखो मीलों तक कारवां है साथ है हर कोई पर फिर भी जुदा है ऐसे में क्यूँ आस, उसने बढाई    हम अपनी तन्हाई में खुश थे अब महफ़िल में तन्हा रह गए जो ना कहना था, हम कह गए   क्या मालूम, ना था मुझको   मौसमी ही था हर सहारा मुझको दिल की कीमत क्या बाज़ार में लगेगी कितनों के ख्वाब ये सोच बिन बिके ही रह गए जो ना कहना था, हम फिर से कह गए     श्यामिली 

क्यूँ बोल पड़ी

  रहने को तो, चुप रहना था कहने को कुछ, नहीं कहना था कभी कंगन, कभी पायल, कभी, मेरी ख़ामोशी बोल पड़ी याद आई, कुछ इस तरह याद आई तेरी, इस तरह गूंगी उदासी बोल पड़ी   मेरा ना लेना, देना था उसका सफर, उसका मेला था करता चाहे, मनमर्जी वो, मैं मन की दासी, बोल पड़ी रहने को तो, चुप रहना था पर , मेरी उदासी बोल पड़ी   जाने कबसे, होंठ सिले थे कैसे किससे, ज़ख्म मिले थे राज़ सोचा था, राज़ ही रहेगा जख्मों की बदहवासी, बोल पड़ी रहने को तो, चुप रहना था मेरी उदासी बोल पड़ी मान तो, लिया ही था सफ़र मेरा , तन्हा ही था फ़िर किस कोने, में दबी मेरी रूह प्यासी, बोल पड़ी रहने को तो, चुप रहना था मेरी उदासी बोल पड़ी श्यामिली

छुपाना तो है

  तुमको कुछ, बताना तो है क्या कहूँ , कुछ जताना तो है समझ सको तो बिन कहे समझो राज़ सबसे ये, छुपाना जो है   जाने कैसे, ना, तुम पढ पाए कौन सी जबां से तुमको समझाएं समझ सको तो समझ लो तुम बोले बिन ही, ना हम मर जाये एक बात को लब पर, लाना तो है कहने का अब बहाना तो है पर कहते कहते रुक जाते है    सबसे वो राज़ छुपाना जो है     अखबार आज की, पढ़ी तो होगी किसी की आँख, गढ़ी तो होगी समझ सको तो समझलो तुम आँख तुम्हारी, भरी तो होगी दिल के करीब, होते है जो दिल से उनको. मनाना तो है मै सपना, तेरा ही हूँ, दुनिया से मुझको, बचाना तो है     इससे पहले की, मै आँखों से छलकूं काजल , आँखों से   छुड़ाना तो है   दिल की दिल में रख लेंगे फिर से राज़ सब से ये छुपाना तो है     श्यामिली

मेरे अपराध

मेरे अपराध मेरे अपराध इतने है, कि बताएं ना जायेंगे लाख छुपालूं तुमसे मैं छुपायें ना जायेंगे कभी सोचा ना था दिन, ऐसा भी आएगा कभी सोचा ना था दिन, ऐसा भी आएगा तुमसे आँख मिलाने में हम इतने घबराएंगे तेरे दरबार को जाने में इतनी देर लगायेंगे मेरे अपराध इतने है, कि बताएं ना जायेंगे   ना दिल की सुने तो क्या करें ना वक्त मिले कैसे जियें हम भटके हुए मेहमां है  तेरे रास्ते पर कैसे हम चल पाएंगे तेरी रहमतो के बादल कब हम से टकराएंगे कब, पहचानेगें खुदको कब, तेरे दर पर जायेंगे मेरे अपराध इतने है, कि बताएं ना जायेंगे   ना मिला जो उसकी याद आती है तू है फिर भी कद्र, की नहीं जाती है तू कहता है, विश्वास तो कर पर कितने कदम तेरे हिसाब से, चल पायेंगे तू कहता है, फ़िक्र ना कर पर कैसे, हम दिल को समझायेंगे कौन समझा है तेरी माया को कैसे हम, बच पाएंगे       मेरे अपराध इतने है, कि बताएं ना जायेंगे   सोचा तो है मर्जी होगी, बस तेरी सोचा तो है मर्जी होगी, बस तेरी डगर हो जाये, आसान यही अर्जी...

Let it go

दर्द को चेहरे से,  बेझिझक  मिलने दें ज़ख्म कैसा भी हो, किसी को तो सिलने दें   दें चाहे रिश्वत, या चाहे सख्त हो जा दिल को शमा से , थोडा तो पिघलने दें   वो किसी का तो हो , चाहे तेरा ना हो मासूम सी कली है, कहीं तो खिलने दें   अच्छा ही हुआ, दिल ही टूटा है उम्र भर है गम , इसे साथ ही चलने दें   उम्मीद क्यूँ लगाई है तूने, मतलबी जहाँ में मतलब को मतलब के , तराजू में तुलने दें   वहम दिल से निकल दे , कोई तेरा भी था हर मोड़ पे बदलेगें वो , बदलतें है बदलने दें   कोई गया है तो, कोई आयेगा भी दिल के हिजाब को, जी भर कर खुलने दे   कहने को कुछ ना कुछ, कहेगी ये दुनिया इस सैलाब से मिटटी को, नाहक ना कुचलने दें   दिन ही ढला है, बाकी है जिंदगी ना मुठ्ठियों को कस , ना रेत को फिसलने दें      हम जान जायेंगे तुझे, आईने की तरह   मुस्कुराहटों को होठों पे, थोडा सा खिलने दें   एक दफा हाल- ए – दिल बयाँ, करके तो देख मरहम सा हाथ, ना काँधे से फिसलने दें   दर्द को चेहरे से,  बेझिझक  मिलने दें ज़ख्म कैसा भी हो, किसी को तो सिलने दें...

खुद रूठे, खुद मने हम

  दर्द से दर्द क्या, कहे हम तू हो जो ना पास , क्या करें हम कहकर खुद से ही, खुद की बात खुद रूठे, खुद मने हम   तू पास बैठे, तो बात भी करें किसी शाम को , रात भी करें क्यूँ ख़ामोशी भी चली आती है, तेरे आने के साथ तू हाल तो पूछ, या बेजुबां ही मरे कंधा, मिल ना सकेगा तेरा   अब बस यही, रहेगा गम कहकर खुद से ही, खुद की बात खुद रूठे, खुद मने हम   हाँ मुझे, याद है वादे तेरे सरपरस्ती के वो, सारे इरादे तेरे आज फिर याद, क्यूँ आई है क्यूँ यादों के बादल, है मुझको घेरे हाल तेरा, अपने हाल सा कब होगा कुछ कहकर देख , ना मुडकर आयेंगे हम कहकर खुद से ही, खुद की बात खुद रूठे, खुद मने हम   तूने पूछा तो, अच्छा ही कह दिया हाल कैसा भी था , जस्बातों में बह गया क्या होगा जब, नज़र नज़र से मिलेगी ये सोच , दिल की, आज ही कह दिया होगा फिर वीरानियों का साथ जानता है दिल ,  क्यूँ फिर ठने मन कहकर खुद से ही, खुद की बात खुद रूठे, खुद मने हम   श्यामिली

फासलों का मतलब दूरी नहीं

  क्यूँ याद नहीं आई मेरी क्या होगी मज़बूरी तेरी दूर हो कर भी, हूँ दूर नहीं   फासलों का मतलब दूरी नहीं   लगता तो है की भूल गए वक़्त बीता   हम भी बीत गए बस हाथ बढ़ाने की देरी थी मंजर फिर से वही जीत गए   देर बहुत तो करदी है हुई इतनी भी देरी नहीं इक कदम बढ़ा कर तो देख फासलों का मतलब दूरी नहीं   तू यही कहीं आस पास है हाँ आज भी जिंदा एहसास है उम्र के साथ बदल जाये जो ऐसी नहीं मेरी प्यास है आज़माने को फिर आज़माले तू उम्र और दोस्ती दोनों का ढलना ज़रूरी नहीं हाँ हाथ फिर बढ़ा कर तो देख क्यूंकि फासलों का मतलब दूरी नहीं     श्यामिली