ना जाने क्यूँ, ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
ये कैसा है जीवन, कैसी आयी है घड़ी
दिल मेरा, रहता, बेचैन क्यूँ है
रस्ते पे, बिछे रहते, ये नैन क्यूँ है
जाने कहाँ बचपन, रह गया पीछे
ना साथ रहा माँ का, ना दौड़े वो पीछे
वक़्त आगे चला, मैं रह गयी खड़ी
ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
अब सफ़र अपना, दिन-रात का है
मुँह से निकली , हर बात का है
कोन ना जाने कब, किसको सिखादे
कब दिल रखले, कब दुख़ादे
मीलो का सफ़र, करे, घंटो में पूरा
फिर भी, हर आँख बेचैन, हर सपना अधूरा
कोई मजबूर कितना, है किसको पड़ी
ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
अब ना जाने, सावन में, क्यूँ गीले नहीं होते
माला जो टूटें, फिर, मोती नहीं पिरोते
सपने नहीं आते, क्यूँ नींद नहीं आती
ना चाँद में वो बात है, ना चाँदनी है भाती
गर अकेले निकल जाए, तो मायूसी सताती
भीड़ में भी रहके, ना बनता कोई साथी
ना किसी से कोई झगड़ा, ना क़िसीसे मैं लड़ी
ना जाने क्यूँ, ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
ये जीवन सपने, संजोने में, निकल गया तो
चाहे कितना दोहराओ, भूल रस्ता गया तो
सारी दुनिया थी जीती, वो दौर ही रवां था
फिर भी खाली हाथ लेके, सिकन्दर गया था
ना सीखा क़िसीसे तो, अब ख़ुद समझ जाओ
बचपन चाहे गया, ना बचपना भुलाओ
वो ना ज़ंजीर थी मेरी, थी ज़िंदगी की कड़ी
शायद इसी लिए ही, हो गयी मैं बड़ी
शीतल खुराना
ये कैसा है जीवन, कैसी आयी है घड़ी
दिल मेरा, रहता, बेचैन क्यूँ है
रस्ते पे, बिछे रहते, ये नैन क्यूँ है
जाने कहाँ बचपन, रह गया पीछे
ना साथ रहा माँ का, ना दौड़े वो पीछे
वक़्त आगे चला, मैं रह गयी खड़ी
ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
अब सफ़र अपना, दिन-रात का है
मुँह से निकली , हर बात का है
कोन ना जाने कब, किसको सिखादे
कब दिल रखले, कब दुख़ादे
मीलो का सफ़र, करे, घंटो में पूरा
फिर भी, हर आँख बेचैन, हर सपना अधूरा
कोई मजबूर कितना, है किसको पड़ी
ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
अब ना जाने, सावन में, क्यूँ गीले नहीं होते
माला जो टूटें, फिर, मोती नहीं पिरोते
सपने नहीं आते, क्यूँ नींद नहीं आती
ना चाँद में वो बात है, ना चाँदनी है भाती
गर अकेले निकल जाए, तो मायूसी सताती
भीड़ में भी रहके, ना बनता कोई साथी
ना किसी से कोई झगड़ा, ना क़िसीसे मैं लड़ी
ना जाने क्यूँ, ना जाने क्यूँ, हो गयी मैं बड़ी
ये जीवन सपने, संजोने में, निकल गया तो
चाहे कितना दोहराओ, भूल रस्ता गया तो
सारी दुनिया थी जीती, वो दौर ही रवां था
फिर भी खाली हाथ लेके, सिकन्दर गया था
ना सीखा क़िसीसे तो, अब ख़ुद समझ जाओ
बचपन चाहे गया, ना बचपना भुलाओ
वो ना ज़ंजीर थी मेरी, थी ज़िंदगी की कड़ी
शायद इसी लिए ही, हो गयी मैं बड़ी
शीतल खुराना
Nice
ReplyDeleteWoooowwwwww...... Beautiful....Awesome.....
ReplyDeleteBeautiful lines and Great start towards a new Journey
ReplyDeleteThank you so much soni
DeleteAdorable,i must say;)
ReplyDeleteKhoobsoorat
ReplyDeleteawesum mam as usual u r perfect in every field
DeleteThank you so much dear, your words always put energy in me.
DeleteBlockbuster
ReplyDeletePerfect stay blessed
ReplyDeleteThank you ji
DeleteWell done
ReplyDeleteThank you all for your comments, but I am not able to recognize all, pl indicate your name as well, keep motivating
ReplyDeleteWow bhabh.. Very nice👌👌
ReplyDeleteThank you so much, but I couldn't recognize you
DeleteBeautiful lines....👌👌...all the best for ur new journey !!!👍👍
ReplyDeleteDi.. you always end up leaving me spellbound!
ReplyDeleteI am Glad to know u!
Keep inspiring :)
Your words matter a lot sweetie
DeleteVery nice sheetal, bahut hi sunder shabd hai... Keep it up express to your fullest.. Blessings!!!!
ReplyDeleteThank you, keep motivating
DeleteWow. I like this bhabhi. Great going.
ReplyDeleteThank you priya
DeleteHard Reality.....Superb lines filled with emotions.....
ReplyDeleteDheeraj
Thanks buddy
DeleteHidden talent ...awesome
ReplyDeleteHidden name awesome
DeleteMan, Awesome lines with great emotions.
ReplyDeletePuneet.
Very nice bua��
ReplyDeleteThanks beta
Deleteसाथ बचपन की यादों के थी मैं खड़ी।आया भवर कश्ती मेरी खूब लड़ी ।जीत गई हर लहर हालातों की ना जाने क्यों मैं हो गई बड़ी ।। awsum lines...magical thoughts ����
ReplyDeleteWas waiting for your comment, thank you so much
ReplyDeleteVery well .keep your passion going . Best wishes.
ReplyDelete😢 unknown admirer again
ReplyDeleteAtti uttam.. . 👌👌👌
ReplyDeletevery nice & heart touching poem..����
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