बेचारगी
ना मुँह मोड़ मुझसे, मुझको बेचारा जान के ये जख्म तेरे ही हैं, देख तो पहचान के जमीं जो खीच ली, पाँव को किधर को धरे बेचारो का सब्र देख, आसमां में घर बना लिए ना कबूल मुझको किया, ठुकराई मेरी बेचारगी दिन बदलेगें जनाब, याद आएगी आवारगी क्यूँ मंदिर जाए, क्यूँ मस्जिद में सजदा करे क्यूँ ना किसी बेचारे को भोजन दिया करें जाओ ना जी पाओगे तुम भी, हमको दीवाना बना के घटा के छठते ही पछताओगे, हमको बेगाना बना के झुकेगा फ़िर सर, बेचारगी भी छाएगी ढूंढोगे तुम, ना मिलेंगे हम, गाओगे गीत फसाना बना के यारों का दौर होता तो कुछ और बात होती रोने पे पिटतें, ना तन्हाई साथ होती उम्र के इस दौर को, क्या तो अब नाम दें जिंदगी बेचारी है, काश कोई सहेली ही साथ होती किसी के आँख से पूछ के तो देख ये मोती किस बेचारगी पे आयें है वो जान लेते अपना हाल – ए- दिल, तो शायद मलाल होता हँसी मे छुप गई बेचारगी, वरना पहले से बुरा हाल होता श्यामिली