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Showing posts from March, 2022

कृष्णमय होलें

  जब भी बोलो सोच के बोलो मुँह जब खोलो कृष्ण ही बोलो उसकी महिमा क्यूँ तुम भूले हो कृष्ण को भज लो कृष्ण के होलो   ना कुछ तेरे बस में बन्दे माया के है ये सारे फंदें अपने कर्म कब बक्शायेगा तेरे कर्म है मवाद से गंदें     हर पल करता कोई आरजू है तन मन से लेकर हर श्वास में बू है एक जुबां है तेरी जो शहद दे सकती उसको भी जहर सा बांटता क्यूँ है   एक पल काफी है तुझे बदलने को एक हल काफी है मुश्किल से निकलने को तू उठे इस लिए ही गिराया है उसने उसका आचल काफी है तेरे सँभलने को   शरण कृष्ण की अब तो लेंले सखा है वो सखा से खेंले कृष्ण नाम को थोडा पी ले कृष्णमय  जीवन अब तो  जींले     श्यामिली x

ख़ामोशी

  जाने कौन छू गया , इस बहती सी ख़ामोशी में हम उठ के चल दिए थे अपनी ही गर्माजोशी में कितना पलट पलट के देखा ना दिखी हमें फिर तेरी राह बस मुड़के देखते रह गए , सूखे पत्तों को इक निगाह   वही खनक , वही एहसास था लगा तो था, की, अब भी, वो पास था बरसों बरस का दर्द, मोम सा हुआ ना याद रहा, कैसे हुए थे हम तबाह   और मुड़ मुडके देखते रह गए , सूखे पत्तों को इक निगाह   ये इश्क नहीं है , तो क्या है ज़ालिम ना भुलाये से भूला ना भगाए से गया कितनी दूर भी चलें जायें फिर लौट वही आते हैं       फिर शाम में तन्हाई है फिर शब है मदहोशी में जैसे फिर कोई छू गया , इस बहती सी ख़ामोशी में   बड़ा वक़्त हुआ , अब कोई तो, फैसला कर कर “ना” ही, सही चाहे , कुछ काम तो मुकम्मल कर यूँ तो याद नहीं है मुझे तेरी साँसों की गर्मी तुझे याद है तो याद दिला कौन से रंग की थी तेरे चाह   कितना पलट पलट के देखा ना दिखी हमें फिर तेरी राह देखे तो देखते रह गए , सूखे पत्तों को, बस , इक निगाह     श्यामिली

कोई दूर, कोई पास

  जिसे जितना लुटाया, वो उतना ही पास आया जिसे चाहा दिल से पाना उसने सदा ही दिल दुखाया   मानो ये जीवन , जैसे एक तितली चाहो ना चाहो , राहें यूँ मिलती नूर तो मिला उसका, मिल ना पाया उसका साया पर , जिसे जितना लुटाया, वो उतना ही पास आया   बिन माँगे मिला वो सम्भाल पर ना पाए वो आएगा कभी क्या हम घर ना जा पाए धूप भी अब तो ढल गई बस घेरने को है अब छाया     पर, जिसे जितना लुटाया, वो उतना ही पास आया   क्या मिलेगा तुमको यूँ मुझको मनाके मेरे ज़ख्मों को छूके मुझे रास्ते पर लाके छूना कुछ इस तरह से कहीं बिखरना जाए काया तुम्हे जितना लुटाया, तुम्हे उतना ही पास पाया   श्यामिली

क्या याद करोगे

  तुम भी क्या याद करोगे , हम ऐसे तुमको भूलेंगे तेरे किस्से तेरी यादें , अश्को से हम धो लेंगे जैसे तुझको, जाना ही नहीं ऐसे तुझको देखेंगे जैसे तुझको , पाया ही नहीं ऐसे तुमको खो देंगे हर एहसास मिटा देंगे हर ज़ख़्म भर लेंगे     तुम भी क्या याद करोगे , हम ऐसे तुमको भूलेंगे   वो मिलना भी ना जाने , कैसे-क्या मिलना हुआ ना आग, कहीं सुलगी ना उठ्ठा कहीं पे धुआं ना सजदे करेंगे अब हम और राहों में तेरी ना ढलेगी अब कोई शाम, अपनी , बाँहों में तेरी   तेरे आने की ख़बर,                                       अब दिवाली, सी ना रही तुझे मिलने से अच्छा , दफन यादों को कर लेंगे तुम भी क्या याद करोगे , हम ऐसे तुमको भूलेंगे   याद नहीं है अब मुझको तूने कैसे पुकारा था कैसे कैसे मेरे लिए कैसे सबको दुत्कारा था हाँ , याद नहीं है अब मुझको रूह कैसे चुराई थी कैसे कैसे एक पल में मैं हुई खुद से पराई थी तेरा फिर से होने से अच्छा खुद के थोडा हो लेंगे तुम भी क्या याद करोगे , हम ऐसे तुमको भूलेंगे   श्यामिली