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Showing posts from June, 2019

जाने वाले चले गए, उनकी याद बस बाक़ी है

जाने वाले चले गए उनकी याद, बस बाक़ी है उनके लिए क्या नहीं किया ये एहसास ही बाक़ी है धूप में छांव से थे वो ख़ुद ही गाँव से थे वो आँसू बह के सूख गए मन में घाव ही बाक़ी है उनके लिए क्या नहीं किया ये एहसास ही बाक़ी है वो हमसे दूर कैसे होंगे हम मजबूर कैसे होंगे हर क़दम पे उनके निशाँ होंगे बस हमको चलना बाक़ी है जाने वाले चले गए उनकी याद बस बाक़ी है एक दिन सबको जाना है फिर काहे को इतराना है दिल को कुछ हल्का ही रख्खो अभी, वक़्त का मोहरा बाक़ी है जाने वाले चले गए उनकी याद बस बाक़ी है बीपी, शुगर और कई ग़म उम्रों से ना माने हम मुठी रेत की खोल दें पैमाना जब तक बाक़ी है जीते जी उनको भी देंखे सम्भाले जो भी बाक़ी है जाने वाले चले गए उनकी याद बस बाक़ी है श्यामिली

गर जुड़ जाओगे योग से

पंजे खीचे , घुटने सीधे बाज़ू उप्पर, साँसे रोकें बच जाओगे हर रोग से गर जुड़ जाओगे योग से कम में ही है ज़्यादा गर समझ लो ये क़ायदा जान जाओगे संजोग से गर जुड़ जाओगे योग से सूक्ष्म क्रियाएँ करते जाओं गहरी साँसे भरते जाओं जानो ख़ुद ही प्रयोग से गर जुड़ जाओगे योग से जितना धीरे उतना तेज़ चिंताओ को आगे भेजं जोगी बन जाओंगे जोग से गर जुड़ जाओगे योग से   पेट दबाओ, गैस भगाओ तन और मन प्रबल बनाओ बच जोओगे निन्द्रा लोभ से गर जुड़ जाओगे योग से चलो उठो अब मान भी जाओ क्रम करो न केवल ज्ञान बड़ाओ बच जाओगे हर रोग से गर जुड़ जाओगे योग से श्यामिली

मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ

मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ ख़ामोश रहूँ या कुछ मैं कहूँ जाते हुए लम्हों को गिनो आधे आधे कब तक मैं जियूँ पर सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ फूल जाने क्यूँ, लाल है सुर्ख़ रहने लगे मेरे, गाल है लहराते हर तरफ़ क्यूँ, टूलिप है जैसे क़ुदरत का, कमाल है दिल चाहे मेरा, मैं पंछी बनूँ इधर उधर फिर उड़तीं फिरूँ सब खुली आँख में बंद करूँ इस शोर की ख़ामोशी को सुनूँ मौसम ने ली फिर अँगड़ाई भीनी भीनी ख़ुशबू आई पल भर में घटा उड़ जाती है कभी शाम ढलें, कभी धूप आई जाने कैसी ख़ामोशी है सर्द सी गर्माजोशी है हाँ, कहने को मैं होश में हुँ फिर क्यूँ छाईं मदहोशी है किधर से चली, किधर को आई संग चलती रही सदा परछाई दिन रात की नहीं बात है है भीड़ के संग संग तन्हाई मैं क्या बोलूँ, मैं क्या देखूँ विचार में हूँ, मैं क्या सोचूँ दिन घड़ियाँ बन बन बीत गए मैं दौड़ में हूँ, मैं कैसे रुकूँ मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ श्यामिली

रंगो में कुछ रंग

रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है पीने में खारा जल होते है पर  दूर से निर्मल दिखने लगें है रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है है कौन सी मंज़िल समझाए कोई कभी सागर, कभी बूँद, बन जाए वही मैं जितना भी समेटूँ, वो बिखर जाता है कितना को ख़ुद जलूँ, वो बुझाए कभी वो बेबस कहाँ, लाचार से दिखने लगें है वो अब भी अंधेरों की तलाश में है, हम चरागो से सदा उनके लिए जलें है रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है ना कोई था तुमसा, ना कभी और भी होगा ना देना धोखा, ना ये जीवन बसर होगा ये भी सच था किसी एक दिन का आज अरसे बाद, सच कुछ और ही होगा चाहो ना चाहो, वो पल याद आने लगे है हँसते-हँसते भी, हमें रुलाने लगे हैं एक उम्र गुज़री थी जिसकी पनाह में आज नज़र मिलाने से भी, कतराने लगे है रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है ये जीवन क्या है, बस बहते जाना है कहीं नदी, कहीं नालों में घर बनाना है इस रात की सुबह तो होके रहेगी वक़्त कैसा भी हो, इसको तो बीत जाना है ह

कब तक

कब तक, दिल, बहलायेगा कोई कब तक, अश्क़, बहाएगा कोई तुम रूठे रहे सदा, इस उम्मीद पे इक दिन तो, तुमको मनाएगा कोई   तुम आंधी ही रहे होगे तभी तो वो, उड़ गया था तुम मोड़ पर ही, खड़े रहे होगे तुम्हारी तरफ़ वो, मुड़ गया था कब तक, उड़ता, जाएगा कोई कब तक, पीछे, आएगा कोई एक तसल्ली से, देख ही लेते कब तक, आस, लगाएगा कोई तुम शोर की, तलाश, में रह गए वो एकान्त में, ढूँढता, रह गया तुम भीड़ में, गुम, ही रह गए वो प्रेम में, पागल, बह गया कब तक, पुकारे, जाएगा कोई कब तक, नज़रें, बिछाएगा कोई तुम इक झलक, दिखला, तो देते कब तक, ना, बिसराएगा कोई तुमने सरगम तो, ज़रूर, छेड़ीं होगी वो मोह में, मघ्न, हो गया मनके तार भी, झँझोड़े, होंगे और वो, गीतकार, हो गया कब तक, धुन बजाएगा, कोई कब तक, गुनगुनायेगा कोई तुम तक, इक तराना ना पहुँचा कब तक, गीत गाएगा कोई ना शुरुआत की तूने, पर अंत तो कर ना मीठी बात की तूने, पर मन तो पढ़ अब तो इंतज़ार ने भी दम तोड़ दिया ना साथ दिया तूने, कुछ मरहम तो कर कब तक, जीते जाएगा कोई कब तक, नैन बिछाएगा कोई औपचारिकता ही कर, मेहमाँ ही बन कब तक, साँसे चलाएगा