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Showing posts from March, 2020

परिवर्तन

कितनी बेरंग थी ज़िंदगी जबकि सुबह शाम का सफ़र था     हर बंदा तनहा था यहाँ  जबकि जमघट हरदम हर डगर है कुछ समय चाहिए कुछ मोहलत मिल जाए थोड़ा और जी ले जो फ़ुरसत मिल जाए अबकी बार है मोदी सरकार प्रभु ने भी सुनली है, इस बार समय चाहिए लेलो तुम बेपनाह मोहलत देदी यार वो सब कैसे, हुआ ज़रूरी जो बन गई थी, अपनी मजबूरी ना घड़ी की सुइयाँ चलती है अब  कल परसों में भी, बड़ गई है दूरी हाँ फ़िज़ा फिर रंगीन हुई है रात से पहले साँझ हुई है  नए पंछीयो का आना जाना भी हुआ फिर क्यूँ हरसु उदासीन हुई है फिर से रास्ते नापने दो  फिर से जीवन नीरस कर दो कुछ-कुछ हम भी बदलेगें कुछ कुछ पहले जैसा-सा कर दो श्यामिली

लक्ष्य

Hello everyone Stay cautious , stay safe that’s the only way.  Work hard and live well. All the best. आत्मविश्वास सफलता की सीढ़ी        जितनी चढ़ती जाओगे अपने अपने लक्ष्य को        उतनी शीघ्र ही पाओगे उठो रोज़ विश्वास से        हर्ष और उल्लास से हम करेंगे, करके रहेंगे        जितना ये दोहराओगे अपने अपने लक्ष्य को        उतनी शीघ्र ही पाओगे अपना अपना सफ़र है अपना        उसका मेरा अलग है सपना जीवन अपने का मेल नहीं है        जब तुम जान जाओगे अपने अपने लक्ष्य को        उतनी शीघ्र ही पाओगे मुश्किल वक्त कमाण्डो सख़्त        पलट के रख्दो दुःख और दर्द ना विपदा की सीढ़ी बने        गर अम्ल इस्पर कर पाओग़े  अपने अपने लक्ष्य को        उतनी शीघ्र ही पाओगे श्यामिली  

तू मेरा चन लगदा

तेरी अँखिया च मैं डूब जाना  के तू मेरा चन लगदा बिना तेरे ते मैं मर जाना के तू मेरा चन लगदा आइया ना यादाँ कदी दिल एँवे मोडियाँ वस वी ना पाई कदी जद दाँ तू छोडयाँ हून साम लें तू मेनू मेरे जानी  के तू मेनू रब लगदा  तेरी अँखिया च मैं डूब जाना  के तू मेरा चन लगदा होईया ना राताँ कदी नेरा नेरा होया हे क़िस्नू तू पा लाया किस्दा तू होया हे आके सिवा ते मेरा सेक जाना ते तू मेनू ना लबना तेरी अँखिया च मैं डूब जाना  के तू मेरा चन लगदा श्यामिली

मन जाने ना

Thank you so much all, for keep telling me where m going off the track. Today’s creation is fusion of compositions. Hope you will like it, do let me know your feedback. मन जाने ना मन जाने ना क्यूँ मैं,  तुमसे मिलूँ,  क्यूँ छुपूँ मन जाने ना क्यूँ है इतनी ख़ुमारी कैसी है बेक़रारी शब मैं काटूँ बैचारी पर यें, वो माने ना वो जाने ना मन जाने ना उसने मन को छुआ  जाने क्या क्या हुआ है ये कैसा धुआँ सुलगायें ना झुलसायें ना मन जाने ना मेरी माने ना आओ तो संग है तरंग है उमंग रूठो तो दिल के उड़े सारे रंग बैठो दो घड़ी,  नज़रें क्या लड़ी  तुम तो हो गए दंग मानो तो सही जो है अनकही कबसे खड़े है हम क्यूँ माने ना मन जाने ना मेरी माने ना श्यामिली