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Showing posts from April, 2020

मौक़ा

क्यूँ बदल गई ज़िंदगी,  किधर गई रफ़्तार सारे वहम निकल गए,  पड़ी वक्त की मार किधर गए वो,  कल के, मालिक थे जो, ना रुके और थमें थे,  कैसे फसें मझदार सोचा था,  रुक जाएगी दुनिया पर तर गए सब,  हमको झूठा था ख़ुमार ना सोचा ना समझा,  ये वक्त भी गँवा डाला हम जैसों को ही मिला था,  था लेखों का चमत्कार क्या है हम,  ना अब भी जान पाए पता पल का नहीं, ख़्याल परसों का,  हम क़ैसे हैं बीमार बेहतर होता,  कुछ तो जी जाते, कुछ कहते सुनते,  बनते किसी के ग़मखार नए आयामों की,  शुरुआत को समझें  कैसे सपनो को,  होने दे तार तार कितनी हसरतें थी,  फिर से शुरू करने की कितनी ख़्वाहिशें थी,  फिर ज़िंदगी लिखने की मिला है मौक़ा,  उठाओ फिर से कलम इक बार छेड़ो मन का मल्हार,  करलो जी भर कर प्यार    ग़र टूट गए हों,  पर साँस फिर भी चालू है भिंडी ना भी हो,  कम किधर ये आलू है कुछ अब बर्तन कम कर लो जीतें जी कुछ धर्म कर लो कुछ पुराने कपड़े ही दे दो यार जाने किसका हो उद्धार  कुछ झाड़ू कट्का तुम करलो कोई पुराना नाटक ख़त्म करलो

किस बात पर

हाँ सोचा कई बार, है सुरूर किस बात पर    कल कुछ था, आज कुछ, फिर ग़रूर किस बात पर    शांति चाहिए, तो भीड़ से छुपते है फिर कैसी वाह वाही, है मगरूर किस बात पर  आराम चाहिए , शीतल छाया को ढूँढते है ख़ुद सब कुछ उजाड़ कर, खट्टे है अँगूर किस बात पर ना चिड़ियों का चहकना रहा, ना मोर की पिंघे है वीरान कर दिए, हरे जंगल, जाने ये फ़ितूर किस बात पर ना इंसां को इंसां समझा, ना बाँटा कुछ पशु पक्षियों से किस बात का गूमाँ है, है मफ़सूर किस बात पर उसकी रज़ा है, उसकी, रज़ा है, कहते उम्र बीत गयी ख़ुद अपनी ही करनी, काट रहे, है तू मजबूर किस बात पर ना कोई आया है, ना बचेगा ,  मज़ार पे आने के लिए कैसा ये ख़याल है, आया ये तसव्वुर किस बात पर ना हाथ दुआ में उठते है, नज़रे भी है बोझिल सी दिन रात ख़ाली दिखते है हाथ, था बड़ा मशहूर किस बात पर जाने क्या क्या खो दिया, दुनिया की भेड़ चाल में आज बैठें तो याद आया, फूटा था अंकुर किस बात पर करदूँ कुछ ठीक, जो थोड़ी मोहलत मिल जाए, क्यूँ कब कैसे हो गया था, चूरचूर किस बात पर तू ही दाता, है बड़े दिलवाला, बिन माँगे ,  है

अपनी जीत

Hope you all are doing well. Keep the morale up and time will witness how human being will again survive from this Pandemic specifically India. Let’s pray and flourish agaaaaiiin. कहने सुनने की बात तो है बिगड़ें से हालात तो है पर देखना हम ही जीतेंगे  हम तुम का साथ जो है ज़िंदगी थोड़ी थमीं तो है आँख अपनी में, नमी तो है होने वाली अपनी मुलाक़ात तो है    पर देखना हम ही जीतेंगे  हम तुम का साथ जो है फिर से बसंत आने को है तरसी कोयल गाने को है तू दूर सही, तेरे आने के ख़यालात तो है फिर तुम देखना, हम ही जीतेंगे  हम तुम का साथ जो है तेरा मेरा , एक है सपना जिसको खोया, वो था अपना दुआ में उठते, अपने हाथ तो है   तुम देखना, हम ही जीतेंगे  हम तुम का साथ जो है वो हो के रहेगा, जो है होना कभी महंगाई, कभी क़ोरोना बुलंद क्षत्रियों से जज़्बात तो है देखना तुम, हम ही जीतेंगे  हम तुम का साथ जो है    श्यामिली

बिनती

ए मालिक, इतना ही देना  ना ग़रूर मुझमें होए आँखें उतनी ही खोलना    ना मेरी वज़ह से, कोई रोए ना जान पाया मैं,  जीवन क्यूँ मिला है  ना जान पाया मैं ये कैसा सिलसिला है ना कोई रास्ता में मिला है ना किसी से कोई गिला है फिर भला क्यूँ, सब अनजाना है    तस्वीर में जैसे, हर कोई बेगना है कोई बड़ के थामले,  ऐसा मुझको सख़ा देना  जीवन का मोल समझाए   ऐसा रहनुमा देना कल था परेशान,  कई साथ। थे, मेरे छूटें आज भी हूँ परेशान,  ना कोई और साथ छूटे ना जानू, था किसका क़सूर,  ना जानू, क्या वज़ह थी बस जाना इतना ज़रूर,  इसमें तेरी ही रज़ा थी पर मैं कहाँ हूँ लायक़  कैसे इम्तिहान मैं दूँ  कुछ हूँ मैं शर्मिंदा ,  पर कैसे तुझसे कहूँ ना जाना अभी चलना,  क्यूँ है पग पग पे काँटे हाँ, वो है, मेरे जैसे,  जिसने भी, यें बाँटे है करनी किसी और की,  भरता है कोई और कुछ कर, तेरे ही है बस की,  चला ये कैसा दौर हाँ, हूँ  मैं कमज़ोर, ना कह सकता अपनी बात तू ज्ञानी ज्ञान है उस और,  ख़ुद समझ मेरे हालात अब तो कुछ कर्म कर भ्रम मेरा, क