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Showing posts from December, 2021

ज़िन्दगी है जनाब

हरपल नए , रंग दिखाती है मैं रोती हूँ , ये मुस्कुराती है हरदम नया, सिखाने को   जाने, क्या क्या खेल रचाती है ये ज़िन्दगी है जनाब , क्या से, क्या हुए जाती है   सोचूँ, तो सफ़र तन्हा था आसरा किसी का, इस पर लगता है जो एहसास, कभी अपना था किसी और का, हुआ लगता है दिल की, दिल में भी ना रहें ना वो बात, होठों तक आती है ये ज़िन्दगी है जनाब , क्या से, क्या हुए जाती है   दूर तलक, धूल सी है जमी  जैसे कोई, आया ना गया हो       छूने को, इस कद्र है तरसी  हर कतरा, राह में बिछा हो   ना याद कोई ,   पर  किसका है तस्सवुर आईने में सूरत, किसकी नज़र आती है       ये ज़िन्दगी है जनाब , क्या से, क्या हुए जाती है               मैं गलत, वो सही             बस ये, रट लिए बैठी है               सज़ा, ना किये की भी रही लडकपन का, हठ लिए बैठी है दीदार हो ना हो, ज़ख्म रहेगा मर्ज़ पर ऐसी, दवा किए जाती है ये ज़िन्दगी है जनाब , क्या से, क्या हुए जाती है   श्यामिली      

तुमसे ना हो पाएगा

                         लड़की हो तुम , तुमसे ना हो पाएगा लड़की हो तुम , हर कोई समझाएगा लड़की हो तुम, कुछ तो शर्म करो , लड़की हो तुम , पिंक ही तुम पर भाएगा   पहले होती थी , दुर्गा काली     लड़की होना ,            अब हुआ है गाली दिल की दिल में रहे,             जब तक, अच्छा है बस माँगा करो,             कान की बाली तुम रहो बस निर्भर , वो चाहे तो नाज़ उठाएगा    लड़की हो तुम , तुमसे ना हो पाएगा   सोचो कैसी वो माँ होगी                            दोनों को जिसने जाया है एक तो मनमौजी जिए,                     दूजे ने, आप गवाया है बहू बेटी का फर्क ये,                     कब तक रहेगा ये अंदाज़ एक बेटे की खातिर                     बहू को कितना सताया है फिर जाने इस बहू के चलते ,                   कितनी बेटीओ को मरवाएगा                   हाँ, लड़की हो तुम ,        तुमसे ना हो पाएगा   एक दो तीन चार,                   चाहे लगे पूरा बाज़ार एक लड़का चाहिए ,                   बस इतनी सी है दरकार धडकन दादी की                   कम होगी

मेरे दोस्त

क्या पता मुझको, कैसी होती क्या बिलकुल ही , ऐसी होती बिना तेरे ओ मेरे दोस्त क्या जाने, ज़िन्दगी कैसी होती   कौन धूप में, छाँव करता बंजर मंज़र में, गाँव करता तेरा कारवाँ, जो ना साथ होता ना मेरे दर्द की, दवा होती बिना तेरे ओ मेरे दोस्त ना जाने, ज़िन्दगी क्या होती   मशीन सी, जीने की राहें थी मिली जुली सी, अपनी चाहें थी तेरी नज़र का, नज़ारा नहीं मिलता   ना जाने, किसकी पनाह होती बिना तेरे ओ मेरे दोस्त ना जाने. कौन सी अपनी आह होती   काश तुझको भी, मेरी याद सताए कोई मुश्किल ही, फिर करीब लाए यूँ तो होंगे तेरे, सहारे कई बस मेरी साथ ही, तुझको करार आए बिना तेरे ओ मेरे दोस्त ज़िन्दगी मेरी, यूँ ही ना गुज़र जाए       श्यामिली  

मेरी किताब

  चंद पन्ने छप जाएँ जो , मेरी किताब के , बे - आबरू हो जाएँ वो, उठते नक़ाब के   दिल का दर्द सुनाने हम क़िधर जाए , दिल का दर्द सुनाने हम क़िधर जाए , काँटे लगे हुए है जब , सभी के ख़्वाब में चंद पन्ने छप जाएँ जो , मेरी किताब के ,   वो रूबरू हुए यूँ , लगा रोक लेंगे हमें , फिर मान लिया हमने , मिलने आए जनाब थे     चंद पन्ने छप जाएँ जो , मेरी किताब के ,   बाद मेरे, मेरी दास्ताँ रह जाए , बाद मेरे, मेरी दास्ताँ रह जाए , रूह बेनक़ाब करनी पड़ी , मुझे हर हिजाब से चंद पन्ने छप जाएँ जो , मेरी किताब के , बे - आबरू हो जाएँ वो, उठते नक़ाब के श्यामिली