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Showing posts from March, 2019

तूने मुझको बनाया

था, तूने मुझको बनाया पर लगा,  मैंने ही मुझको बनाया तूने छोड़ा ना, कभी मुझको अकेला पर, खुदक़ो था, अकेला ही पाया तो मान लिया,  मैंने मुझको बनाया ये जन्म, ये जन्म था मेरा, बिलकुल तेरा दो पल को ही था, लगना इसमें डेरा, फिर क्यूँ हर पल, फिर क्यूँ हर पल, था मेरा मन भरमाया नादान थी मैं, नादान थी मैं, कुछ समझ ना आया था, तूने मुझको बनाया था, तूने मुझको बनाया पर फिर मान लिया,  मैंने मुझको बनाया तेरे साथ से ही, तेरे साथ से ही, सदा से ही थी खड़ी मैं पर जाने क्यूँ थी, सब से लड़ी मैं तेरे हाथ थी, डोरी थी बाँह, थी बाँह तूने मरोड़ी क्यूँ मन मेरा ये समझ ना पाया तू था, तू था मेरे लिए रूप बदल के आया था, तूने मुझको बनाया पर मुझको लगा,  मैंने ही मुझको बनाया वो ना हार थी मेरी वो ना, हार थी मेरी हाँ, पर, सीख थी मेरी वो बस थोड़ा सा, वो बस थोड़ा सा, रोष था मेरा लगा क़िस्मत पे, जो दोष था मेरा पर आज फिर पर आज फिर बात समझ ये आयी प्रारब्ध था मेरा, ना थी क़िस्मत की लड़ाई तूने कैसे कैसे जाने कैसे कैसे था समझाया     नादान थी मैं, हाँ, नादान थी मैं, कुछ समझ ना

शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है

शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है फैला है नीर कहीं कहीं उड़ता गुलाल है शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है राहें ये, दिल की हैं ना मिलने पे, मिलती है दिल क़ाले क़ाले है होंठ लाल लाल है शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है चुनरी लाल है कहीं हरी चूड़ी भी, है वहीं झंडा है तिरंगा जब तिरंगा ही रहेगा, रब ना और रंग भायें अब तिरंगे पे, हम निहाल है शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है आई फिर, होली है मिलना, हमजोली है प्रेम के ही रंग लगे प्रेम की ही चाल है शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है रंग अतरंगी है जैसे साथ संगी है कल होगा दाग़ ये आज जो गुलाल है शब्दों का जाल, कहीं रंगो का जाल है श्यामिली

मैं क्यूँ बान्धू ख़ुद को, जब, दाता मेरा अनन्त है

मैं क्यूँ ना उड़ूँ, मैं क्यूँ ना खिलूँ मैं क्यूँ ना लहराऊँ, मैं क्यूँ ना गिरूँ मैं क्यूँ षीण रहू शीत में, जब आने वाला बसन्त है   मैं क्यूँ बान्धू ख़ुद को, जब, दाता मेरा अनन्त है मैं ख़ुशबू नहीं, जो, पल में उड़ जाऊँ मैं शीशा नहीं, जो, पल में चटक जाऊँ मैं चिड़ी की चहक हूँ, जो दिल में बस जाए मैं तारों की हूँ झिलमिल, जो चमकें तुरन्त  तुरन्त  है मैं क्यूँ बान्धू ख़ुद को, जब, दाता मेरा अनन्त है मैं ख़्वाब नहीं कोई, जो पल भर में टूटें मैं शबाब नहीं कोई, जो उम्र भर में उतरे मैं कशिश हूँ एक, ना जीते जीं छोड़ूँगी मैं ख़्वाहिश हूँ नेक, जिसके फल बेअंत है मैं क्यूँ बान्धू ख़ुद को, जब, दाता मेरा अनन्त है मैं आँख का नहीं आँसू, पर निर्मल, इक जल हूँ मैं चेहरे का नहीं सकूँ, पर निर्मल,  इक मन हूँ मैं पूरी होती दुआ नहीं, पर साथ, जीवन भर हूँ मैं तुम हूँ, हाँ, तुम्हीं, अक़्स सा ही, मेरा मत है मैं क्यूँ बान्धू ख़ुद को, जब, दाता मेरा अनन्त है मैं रुक ना पाऊँ, रोके, साथ मेरे,  मेरे  सब है मैं क्यूँ खाऊँ धोखे, साथ मेरे,  मे रा  रब है मैं चंचल हूँ तितली, मैं

औरत सब समझती है

औरत कहाँ समझती है झूठ फ़रेब की दुनियाँ को हँसके मिलते चेहरों की कज़रारी चंदनियाँ को           औरत कहाँ समझती है           गिरते हुए चरित्रों को           मौक़े की ताक में बैठे           दुश्मनी करते मित्रों को औरत कहाँ समझती है ग़रझते मेघों की वाणी को धुँधलाती तस्वीरों को मध्यम से हुई उस हानि को          औरत बस समझती है उम्मीद की उन किरनो को बहती हुई उन झीलों को लहराते उन झरनो को औरत बस समझती है सृष्टि के अंतर मन को पोह के फटने से लेकर खिलते चंदा जीवन को औरत बस समझती है कोपले कब कब खिलती है चाहे दूरी हो फिर भी धरा अम्बर से मिलती है औरत सब समझती है कुछ कहती नहीं पर मुख से तिस्क़ार क्यूँ सहती तुमसे बचाए तुमको ही हर दुःख से औरत सब समझती है मानो ना अबला नारी इसे ज़ंजीरे ये बांधे खुदी ना बाँधे तीर तलवारी इसे औरत सब समझती है तुम छल ना पाओगे इसको तुम जितना इसको जानोगे और गहरा पाओगे इसको         श्यामिली

तेरा दर्शन किंवे पान्वा, मेरे ठाकुरा

तेरा दर्शन किंवे पान्वा, मेरे ठाकुरा  किंवे मैं, दिल दी प्यास भुझावाँ, मेरे ठाकुरा तेरे दर्शन नू ललचावाँ, मेरे ठाकुरा किंवे मैं, दिल दी प्यास भुझावाँ, मेरे ठाकुरा दो दिन बीत ग़एँ, दोवी बीत जानगे जे, तूना आया हुनवि, अस्सी क़ीद्दर जाँवाँगे किंवे, किंवे, किंवे, घर तेनु बुलावाँ, मेरे ठाकुरा किंवे मैं, दिल दी प्यास भुझावाँ, मेरे ठाकुरा तेरा दर्शन किंवे पान्वा, मेरे ठाकुरा तेरे दर्शन नू ललचावाँ, मेरे ठाकुरा अन्नी अख़खा, होन्या ने, राह फेरवी देख दिया हर वैले, ऐ खोईयाँ ने, रस्ता ही उडीक दिया किंवे, किंवे, किंवे, नैना नू रसते लाँवाँ, मेरे ठाकुरा किंवे मैं, दिल दी प्यास भुझावाँ, मेरे ठाकुरा तेरा दर्शन किंवे पान्वा, मेरे ठाकुरा तेरे दर्शन नू ललचावाँ, मेरे ठाकुरा तू ईद्दर आन्ना वें, मैं, उथ्ते मूड जान्नी आँ तेरे मन्दर आंके वी, बाहर धयाँन लग़ानी आँ किंवे, किंवे, किंवे, धयाँन तेरे ते लाँवाँ, मेरे ठाकुरा किंवे मैं, दिल दी प्यास भुझावाँ, मेरे ठाकुरा तेरा दर्शन किंवे पान्वा, मेरे ठाकुरा तेरे दर्शन नू ललचावाँ, मेरे ठाकुरा जो है वो तेरा है, लगदाँ फेरवी मेरा है जाणा कुझनई ना