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Showing posts from May, 2022

सबका वक्त आएगा

  कौन किसके साथ है कैसे कौन समझ पायेगा सबकी अपनी अपनी पारी है वो खुद को पार लगाएगा सब अपना अपना सोचेंगे जब सबका वक्त आएगा   आज वो उसकी टीम में है क्यूँ मेरा साथ निभाएगा टीम बदलने के साथ ज़ज्बात भी बदल जायेगा सब अपना अपना सोचेंगे जब सबका वक्त आएगा   क्या हार जीत का चक्कर है ये सब यहीं रह जायेगा क्या हार जीत के चक्कर में अपनो से मुंह फिरायेगा सब अपना अपना सोचेंगे जब सबका वक्त आएगा   आज साथ है , कल का नहीं भरोसा कल तू फिर पछतायेगा     खेल खत्म पैसा हज़म कल फिर से काम पर लग जायेगा कब तक अपना अपना सोचेंगा ये वक्त ना जाकर आएगा   श्यामिली

वक़्त वक़्त की बात है

  वो दोस्तों का मिलना हर बात पर खिलना बिन बात के ही रूठना बिन बात फिर बदलना सब वक़्त वक़्त की बात है   ना रंगे हुए चेहरे थे ना बिन बात के पहरे थे ना उसूल कोई था ज़रूरी रिश्ते एकदम गहरे थे आज फिर चाये पे मुलाकात है सब वक़्त वक़्त की बात है   बचपन में थी, जवानी की जल्दी जवानी आई, हुई कमाने के जल्दी यूँ भागदौड़ का हुआ सहारा जीने को थी जिंदगी , रही काटने की जल्दी ना कोई कमाई , ना कोई रिश्ता बचा खाली मेरे अब दोनों हाथ है सब वक़्त वक़्त की बात है   ना खबर कभी लगेगी, रहेगा कौन अपने साथ कुछ कहकर तो देखो , कई गिरेबान पे होगें हाथ ना ताल मिले कैसे मिल पाएंगे दिल हर चेहरा लेकर आएगा अपनी अपनी सौगात गौर से देखो , हैरान सारी काएनात है सब वक़्त वक़्त की बात है          श्यामिली

अपना जहाँ बुलंद है

क्या किसी की मर्ज़ी है किसको क्या पसंद है क्या उसने सोचा होगा क्या लगी लगन है   यही सोचने में अब अपना जहाँ बुलंद है   कहीं वो मुझको,  गलत ना समझे कहीं वो मुझको,  ना पहचाने कहीं ना माने,  मुझको दोषी करने लगे ना कहीं,   बहाने यहीं है अब,  कश्मकश मेरी    जिंदगी रहती,  यूँ ही तंग है यही सोचने में अब अपना जहाँ बुलंद है   वो बुलाये और,  ना जाऊं मै यही सोच सोच,  इतराऊँ मैं उसकी एक आहट,  सुनते ही हो जाती हूँ,  मलंग मैं जितने रूप,  उतने ही रंग देख गिरगिट भी,  हुई दंग है          यही सोचने में अब अपना जहाँ बुलंद है   चलूँ किस राह, किस राह,  मुड जाऊं मै   रहूँ उसके संग मै फिर तन्हा,  कैसे रह जाऊं मै वो है,  फिर भी नहीं है ये वज़ूद की,  कैसी जंग है   यही सोचने में अब अपना जहाँ बुलंद है   मै खुश तो हूँ, हूँ उदास कैसी   है अश्क इतने , फिर प्यास कैसी आँखे फिर,  धुली धुली है   मुस्कराहट फिर,  मंद मंद है यही सोचने में अब अपना जहाँ बुलंद है     श्यामिली 

तेरी याद

ना कोई गम है ना ही फिर तन्हाई है ना किसी ने मुडके देखा ना भादो की ऋत आई है   फिर क्यूँ, दिल को बहलाने तेरी याद, चली आई है   ख़ामोशी के हरसू मैले है कहने को, तो हम , अकेले है हर ख्याल, दिल से यूँ खेले है ज़ख्मों की, झड़ी लग आई है ऐसे में, दिल को बहलाने तेरी याद, चली आई है   टूटी मैं, या सीखा नया छूटा तू, या बीता समा छटे बादल, जब आई हवा महोब्बत टूट कर, निखर आई है फिर क्यूँ, दिल को बहलाने तेरी याद, चली आई है   ये कैसा एहसास है समंदर में हूँ, पर प्यास है दो घड़ियाँ अब भी है , जो मेरे पास है यूँ तो, जिंदगी यूँ ही, गवाई है अब क्यूँ, दिल को बहलाने तेरी याद, चली आई है   ना लफ्ज़ बाकी, ना जाम है नाकामी का किस्सा, अब सरे आम है ख़बर है , गैरों में मेरा अब नाम है कितना बेरंग है धुआं, शायद चिठ्ठियों को आग लगाई है फिर क्यूँ, दिल को बहलाने तेरी याद, चली आई है         श्यामिली