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Showing posts from November, 2019

उड़ान

आज हूँ मैं बेचैन बड़ी सोचूँ यूँही खड़ी खड़ी  क्या धरती सचमुच गोल है सच है या फिर झोल है फिर कैसे, ऊपर नीचे है  क्या ऊपर अम्बर, पाताल नीचे है क्या सपनो की कोई दुनिया है जो हरदम मुझको खींचे है मैं रहूँ यहाँ, या जाऊँ वहाँ इस पल को जियूँ, या बहूँ तनहा मैं पानी की कोई बूँद नहीं मैं इन्सा हूँ, हूँ कर्म से बंधी  मेरी मर्ज़ी मैं खुल के जियूँ  मेरी मर्ज़ी मैं आँसू पियूँ मैं ख़ुद के मुताबिक़ चलती हूँ फिर दूजे से क्या आस करूँ क्यूँ है परेशां, क्यूँ ऐंठा है तू किसके लिए, अब बैठा है   तू कर्म करे, मैं रहूँ गमगीन अब ऐसा नहीं कोई ठेका है दुनिया क्या कहती-सुनती है अब खुदसे मेरी बिनती है मैं ख़ुद से क्यूँ शर्मिंदा रहूँ बात रहती बनती बिगड़ती है अब मैं कितना और बेचैन रहूँ धीरज धर लूँ या मन की सुनूँ मन्थन से जो ये पखेरू मिले अब रात दिन मैं उड़ती फिरूँ अब रात दिन मैं उड़ती फिरूँ श्यामिली

दोस्ताना

याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा गुनगुना रहा है दिल,  बस तराना तेरा ना तू खून मेरा ये, ना कोई कमीं है तू बढ़ कर है सबसे तू ही मेरी घड़ी है तू है अक्स मेरा तू ज़माना मेरा याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा है तू भी वही और हूँ मैं भी वही है तू भी सही और हूँ मैं भी सही बढ़ा देना हाथ देखकर डगमगाना मेरा याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा क्या खोया क्या पाया     कैसे अब तलक मुस्कुराया तू उतनी बार याद आया मैंने जब जब तुझे भुलाया पर कैसे भूल जाऊँ        तेरा रूठना, मनाना तेरा    याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा तू दूर जा चुका था जब तक समझा तुझे बेबस हो चुका था ना कुछ भी सूझा मुझे     ना भूले से भूले  अब फ़साना तेरा याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा ओ बचपन के साथी मेरे साथ होले क्यूँ पथराई है आँखे मेरे काँधे पे रोले संभलजा ना भाए कतराना तेरा याद आया है, मुझको   फिर याराना तेरा तेरी ख़ैर माँगू सलामत रहे तू    दुआयें मेरी ले जा जा, जी ले, ज़रा तू     ना दूँढे मिलेगा दोस्ताना म

नींद

महीने पे महीने साल दर साल बीतने को आए  पर अब भी मुझको, ये भोर क्यूँ ना भाए दशहरा भी गया  गयी अब तो दिवाली भी पर ये कुम्भकरन मेरा मुझसे मर  ना  पाए जाने अब भी मुझको, ये भोर क्यूँ ना भाए सोचा था बाल अवस्था है कभी तो खत्म होगी जीवन इक कठिन रस्ता है कभी तो बड़ी हूँगी  बचपन मेरा मुझसे ना ये वक़्त छीन पाए जाने अब भी मुझको, ये भोर क्यूँ ना भाए माँ बचपन में बोली थी सोचा एक ठिठोली थी कैसे सारा जीवन बिताओगी कभी तो काम पर जाओगी पसंद नापसंद बस मिथ्या है हर कोई बस कर्म फ़ल ही पाए  पर जाने अब भी मुझको, ये भोर क्यूँ ना भाए चलो उम्र अब भी पड़ी है नव वर्ष की भी घड़ी है एक मंडल और नींद लेते है अबके शायद वो साल आए शायद सूरज ही, थोड़ा बदल जाए नित नए रंग बिखराए  और चमत्कार हो जाए और ये भोर, शायद, मुझको, भा जाए   श्यामिली          

तलाश

तलाश तो है, उस लम्हे की, जो बीत गया  तलाश तो है, उस ज़स्बे की, जो भूल गया काश वो मुक़ाम भी आए, वो कहें तलाश तो है, उस कमले की, वो किधर गया तू ना कर पाया वफ़ा,  तो, ना वक्त ज़ाया कर पलट, देख ले, एक बार, शायद मुकम्मल तेरी तलाश हो हर शख़्स वही खोजता है जो उसको मिला नहीं जिसे पाकर भी खोया उसका कभी ग़िला नहीं    ना दर्द बाँट पाया मेरा,  ना गम है मेरे दोस्त, तेरे बचपन  के सहारे भी मेरी मरहम के लिए काफ़ी है हम तो यूँ आस लिए बैठें है गोया, कुदरत उसे तलाशेंगी, हमारे वास्ते     कुछ घड़ी और जो हो जाती जाने किससे सामना होता साँस जिस्म से निकल जाती ज़ाया तेरा लौटना होता दो घड़ियाँ सकूँ की ही तो, माँगी थी,  उस परवरदिगार से तुम क्यूँ रूठ के, उठ के चल दिए मेरी मज़ार से     पाकीज़ा सी ज़िंदगी थी कैसे रास्ता भटक गए तुम सकूँ अपना भी खोया तलाश अभी खुद की भी बाक़ी है तुम यूँ ना देखा करो मुझे, उम्मीद से अभी तो मैं खुद ही की, तलाश में हूँ श्यामिली

My Random Thoughts

क्या चाहती हो कहना        समझ ना पाऊँ मैं टुकुर टुकुर देखती हो        कहीं मर ना जाऊँ मैं तेरा यूँ थिरकना हो              मेरा यूँ चहकना हो        झरने के गूँझो में ख़ामोशी हो        ऐसे स्वर्ग की तलाश है चलो ठीक है, आगे बढते है कुछ अपने लिए भी, करते है कब तक सकूँ को तलाशते रहेंगे जो मिला उसमें, संतुष्टि करते है तुमसे नज़र मिली   या नहीं ,               ना जान पाए कभी तुमको तलाशने की चाह में        ना खुद को ढूँढ पाए कभी         तेरे ज़िक्र ने, फिर दीवाना कर दिया तेरा साथ भी, जुल्म से कम कहाँ था तेरे साथ, की आदत हुई, क्या करूँ  वर्ना अकेले, तेरा ही ग़म कहाँ था क्या होगा आगे का सफ़र        किधर ले जाएगी डग़र क्यूँ फसना है  क्यूँ फसना है, सवालों के भँवर        जी तो ले, ना बीत जाए उम्र तेरा आना तो, मुश्किल था ही तेरा जाना भी हो गया मुश्किल तेरे साथ की लत यूँ लगी साँसो का चलना भी हो गया बोझिल हर तरफ धुआँ ही धुआँ है समाचार है, कि दूषित है हवा पर मन में जो, आंधियाँ है समाचार में, ज़िक्र भी ना हुआ     श्याम