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Showing posts from September, 2022

बारिश

  आज भी है तन्हा मगर,   किसी फ़िराक में लगती है कोई आज भी है सूखा किसके इंतज़ार में जगती है क्यूँ बिन मौसम है बारिश  याद में किसकी बरसती है   कल ही की तो बात थी पूनम की चांदनी रात थी लौट गया दरवाजे से कोई उलझी जैसे कायनात थी   मृत जैसी ठंडी साँसे थी आज फिर क्यूँ सुलगती है क्यूँ बिन मौसम है बारिश  याद में किसकी बरसती है   बरसे जैसे पहली बूंदें हो सपने में आँखें मूंदे हो मन को उडाये, दूर ले जाये फिर खुदको , खुदसे गूंधे हो   थी चूर चूर , बिखरी बिखरी किसको समेटे लगती है किसे भिगोने के लिए बिन बात बरसने लगती है     क्यूँ बिन मौसम है बारिश याद में किसकी बरसती है     श्यामिली

मुश्किल है

  बेहिसाब का हिसाब लगाना, मुश्किल है अब और लब पर, बात दबाना मुश्किल है   कहने को तो पूछ लिया, करते हो तुम पर हाल-ए-दिल, तुमको बताना मुश्किल है   सोचा तो था कि, हम पूछ लेंगे पर हटते क़दमों को बढ़ाना, मुश्किल है   जो जा-जाकर, लौट कर आ जाये ऐसे जाते को भुलाना, मुश्किल है   वक़्त का सुना है , भर देता है हर घाव उम्र बीत गई , वो बात भुलाना मुश्किल है   अटकले लगाते रहेंगे, जानने वाले किसी को कोई जान जाये , इतना याराना मुश्किल है           बेहिसाब का हिसाब लगाना, मुश्किल है     श्यामिली

Happy Bhagwatam Appearance Day

  Today is the most auspicious day of the year, Bhadra Purnima, Srimad Bhagwatam appearance Day, SB is the Granth avatar of Shri Krishna. On this day, The Supreme Lord who appeared in the form of Scripture. “If on the full moon day of the month of Bhādra one places Śrīmad-Bhāgavatam on a golden throne and gives it as a gift, he will attain the supreme transcendental destination.” SB 12.13.13   Wishing you a very Happy Bhadra Purnima and Wish , you all will bring Krishna as Scripture in your home today or asap.   वेद व्यास का, मन घबराया लिखा बहुत कुछ, पर चैन ना पाया पूछा गुरूजी, तुम बतलाओ क्या और लिखूं समझ ना पाया   नारद बोले लिखा बहुत कुछ लिखा है जो भी है बिलकुल तुच्छ तुमने ये कैसे ग्रन्थ लिख डाले सबको कर दिया कर्मकांड हवाले   लिखा नहीं कुछ कृष्ण महिमा कैसा था बचपन कैसी थी भंगिमा कैसे अब तुमको चैन भी आये लिखो अब जो कृष्ण को भाए   होगी फिर कृपा नारद ने दोहराया वेद व्यास को सब समझ आया ले ली समाधि और लिख डाला कृष्

यारों

  संभाल कर, इससे खेलो ना हाथ से, फिसल जाये तन्हा वो भी है, तेरी तरह ना वक़्त ये, निकल जाये कुछ सब्र तो, किया करो होगा अपना भी, समां यारो कुछ होंसला, रखा करो होगा अपना भी, कारवां यारो   तुम दूर हो मगर , दूरी है कहाँ यारों की यारी में, मज़बूरी है कहाँ गर मिलने का मंसूबा हो , होगा अपना सफर भी , रवां यारो कुछ होंसला, रखा करो होगा अपना भी, कारवां यारो     मरासिम तो है , चाहे साथ ना हो दुआ में याद रखना, बढ़ाने को हाथ ना हो दिल तो मिलाये रखना होगा अपना क़िस्सा, खुशनुमा यारो   कुछ होंसला, रखा करो होगा अपना भी, कारवां यारो     श्यामिली