परिवर्तन
कितनी बेरंग थी ज़िंदगी
जबकि सुबह शाम का सफ़र था
हर बंदा तनहा था यहाँ
जबकि जमघट हरदम हर डगर है
कुछ समय चाहिए
कुछ मोहलत मिल जाए
थोड़ा और जी ले
जो फ़ुरसत मिल जाए
अबकी बार है मोदी सरकार
प्रभु ने भी सुनली है, इस बार
समय चाहिए लेलो तुम
बेपनाह मोहलत देदी यार
वो सब कैसे, हुआ ज़रूरी
जो बन गई थी, अपनी मजबूरी
ना घड़ी की सुइयाँ चलती है अब
कल परसों में भी, बड़ गई है दूरी
हाँ फ़िज़ा फिर रंगीन हुई है
रात से पहले साँझ हुई है
नए पंछीयो का आना जाना भी हुआ
फिर क्यूँ हरसु उदासीन हुई है
फिर से रास्ते नापने दो
फिर से जीवन नीरस कर दो
कुछ-कुछ हम भी बदलेगें
कुछ कुछ पहले जैसा-सा कर दो
श्यामिली
Wah hi wah 👍👍 !!
ReplyDeleteRegards
Sanjeev
Wah hi wah 👍👍 !!
ReplyDeleteRegards
Sanjeev
Thanks again
DeleteBahut badhiya madam
ReplyDelete👍
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ReplyDeleteExcellence at it's Best.
ReplyDeleteIt's a classic
Very nice👍
ReplyDelete👍
DeleteBahot hi badiya, madam
ReplyDelete@vikram
Kuchh pahle jaisa sa karo.....bohat mast likha hai ji🏅✍️👍👌😊
ReplyDeleteReally gud
ReplyDeleteU r such a gud poet
Wow really nice poem mam��
ReplyDelete👍
ReplyDeleteAmazing lines on how to take everything positively in current situation :)
ReplyDeleteSuperrbbb mam
ReplyDeleteThanks
Deleteआप की कविताओं में व्यक्त जज्बातों का मै कायल हो गया हूं।
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब
Delete👏👍
ReplyDeleteGreat work with Staunch n Strong affluence with Stinch of backdrops n inverse vibes!!!
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