किस बात पर



हाँ सोचा कई बार, है सुरूर किस बात पर   
कल कुछ था, आज कुछ, फिर ग़रूर किस बात पर   

शांति चाहिए, तो भीड़ से छुपते है
फिर कैसी वाह वाही, है मगरूर किस बात पर 

आराम चाहिए , शीतल छाया को ढूँढते है
ख़ुद सब कुछ उजाड़ कर, खट्टे है अँगूर किस बात पर

ना चिड़ियों का चहकना रहा, ना मोर की पिंघे है
वीरान कर दिए, हरे जंगल, जाने ये फ़ितूर किस बात पर

ना इंसां को इंसां समझा, ना बाँटा कुछ पशु पक्षियों से
किस बात का गूमाँ है, है मफ़सूर किस बात पर

उसकी रज़ा है, उसकी, रज़ा है, कहते उम्र बीत गयी
ख़ुद अपनी ही करनी, काट रहे, है तू मजबूर किस बात पर

ना कोई आया है, ना बचेगा, मज़ार पे आने के लिए
कैसा ये ख़याल है, आया ये तसव्वुर किस बात पर

ना हाथ दुआ में उठते है, नज़रे भी है बोझिल सी
दिन रात ख़ाली दिखते है हाथ, था बड़ा मशहूर किस बात पर

जाने क्या क्या खो दिया, दुनिया की भेड़ चाल में
आज बैठें तो याद आया, फूटा था अंकुर किस बात पर

करदूँ कुछ ठीक, जो थोड़ी मोहलत मिल जाए,
क्यूँ कब कैसे हो गया था, चूरचूर किस बात पर

तू ही दाता, है बड़े दिलवाला, बिन माँगे, है सब दे डाला      
मेरी कही उनकही को बक्शा, जाने अर्जी करली मंज़ूर, किस बात पर

श्यामिली

Comments

  1. Madam, bahot hi achha aur dil se likha hai aapne, aap har baar achha likhte ho, lekin fir next time jab likhte ho to confuse ho jaata hu ye badiya likha hai ya pehle wala.

    Anyways mam great performance.

    भगवान जिम्मेदारी भी उन्हें ही सौंपता है

    जो इसे अपने कांधे पर उठा सके और बिना किसी अड़चन की परवाह किये इसे अच्छे से निभा सके

    #vikram

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  2. Waah.... awesome mam

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  3. 🙏🙏🙏🙏👋👋👋👋

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  4. खुद अपनी ही करनी काट रहे हैं--- अति उत्तम।

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  5. An absolutely amazing ma'am 👏👏👏

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