अपना जहाँ बुलंद है
क्या
किसी की मर्ज़ी है
किसको
क्या पसंद है
क्या
उसने सोचा होगा
क्या
लगी लगन है
यही सोचने में अब
अपना जहाँ बुलंद है
कहीं वो मुझको,
गलत ना समझे
कहीं वो मुझको,
ना पहचाने
कहीं ना माने,
मुझको दोषी
करने लगे ना कहीं,
बहाने
यहीं है अब,
कश्मकश मेरी
जिंदगी रहती,
यूँ ही तंग है
यही
सोचने में अब
अपना
जहाँ बुलंद है
वो बुलाये और,
ना जाऊं मै
यही सोच सोच,
इतराऊँ मैं
उसकी एक आहट,
सुनते ही
हो जाती हूँ,
मलंग मैं
जितने रूप,
उतने ही रंग
देख गिरगिट भी,
हुई दंग है
यही
सोचने में अब
अपना
जहाँ बुलंद है
चलूँ
किस राह,
किस राह,
मुड जाऊं मै
रहूँ
उसके संग मै
फिर तन्हा,
कैसे रह जाऊं मै
वो है,
फिर भी नहीं है
ये वज़ूद की,
कैसी जंग है
यही
सोचने में अब
अपना
जहाँ बुलंद है
मै
खुश तो हूँ,
हूँ
उदास कैसी
है
अश्क इतने,
फिर
प्यास कैसी
आँखे फिर,
धुली धुली है
मुस्कराहट फिर,
मंद मंद है
यही
सोचने में अब
अपना
जहाँ बुलंद है
श्यामिली
Superb ma'am 👌 Hare Krishna 🙏
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteBehatreen
Proud of you Respected mam jee
Hare Krishna
Superb mam🙏
ReplyDeleteLajawaaab👏👏👏
ReplyDeleteऐसी लागी लगन
ReplyDeleteमीरा हो गई......
जय श्री कृष्णा मैडम
🙏
ReplyDeleteSuperb 👌👌
ReplyDeleteGreat mam 🙏
ReplyDeletePower of words growing day by day .keep it up 👍
ReplyDeleteआपका जहाँ बुलंद है और रहेगा..बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteVery nice,
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