सफर
बस राहगीर को, देखा किये कभी राह को, मुडके देखा है किसकी, कोई मंजिल है क्या या कर्मो का सब, ये लेखा है पीछे पीछे, दौड़ते दौडते कब कौन, आगे निकल गया क्या जल्दी है, जानने की किस हाथ में, किसकी रेखा है अब राह ही मंज़िल लगती है अब राह ही, मंज़िल लगती है उड़ते पक्षी से, सीख लिया थकने पर, घोंसला याद रखे दिन में सोये हुए तुमने , कोई पक्षी क्या देखा है चींटी उतना ही, लेती है जितना वो, उठा पाए सबको लेकर जाती है इक दाना, अगर भी मिल जाये हम जाने, किस फ़िक्र में है कौनसा जाने, सफर ये है जो मिले, ना काफी होता है किसी को खुश, यहाँ नहीं देखा है श्यामिली