सफर
बस
राहगीर को,
देखा
किये
कभी
राह को,
मुडके
देखा है
किसकी,
कोई
मंजिल है क्या
या
कर्मो का सब,
ये
लेखा है
पीछे
पीछे,
दौड़ते
दौडते
कब
कौन,
आगे
निकल गया
क्या जल्दी है,
जानने की
किस हाथ में,
किसकी रेखा है
अब
राह ही मंज़िल लगती है
अब राह ही,
मंज़िल लगती है
उड़ते
पक्षी से,
सीख
लिया
थकने
पर,
घोंसला
याद रखे
दिन
में सोये हुए तुमने,
कोई पक्षी क्या देखा है
चींटी उतना ही,
लेती है
जितना वो,
उठा पाए
सबको
लेकर जाती है
इक
दाना, अगर भी मिल जाये
हम जाने,
किस फ़िक्र में है
कौनसा जाने,
सफर ये है
जो मिले,
ना काफी होता है
किसी को खुश,
यहाँ नहीं देखा है
श्यामिली
Wahhh mam👍👌
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteअति सुंदर !
ReplyDeleteगर्व है आप पे !
हरे कृष्णा
Superb .and completely true
ReplyDeleteNice one 👏, Hats off Mam🙏
ReplyDeleteOsum composition as always 👏👏 Hare Krishna 🙏
ReplyDeleteSuperb Mam
ReplyDeleteNice mam 🙏🙏
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDelete👍
ReplyDeletePoetry should be with heart, this is rajoguni poetry
ReplyDeleteActually that not poetry, it’s view
ReplyDeleteSuperb and TRUE 👌
ReplyDeleteVery true Madam
ReplyDeletelovely
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