तुम्हारी बातें
ये जीत हार की बातें हमें समझ नहीं आतीं तेरे इनकार की बातें हमें समझ नहीं आतीं ता उम्र गुज़ारी है जिसकी पनाह में कैसे उसे कहदे की हम बेवफ़ा थे ये बेवफ़ाई की बातें हमको नहीं भातीं ये जीत हार की बातें हमें समझ नहीं आतीं दिल का क्या कहे ये दर्द ढूँढ ही लेता है हम कैसे समझाए इसे ये जीवन इक समझोता है इस उम्र में तन्हाई क्यूँ छोड़े, नहीं जाती ये जीत हार की बातें हमें समझ नहीं आतीं क्यूँ ज़रूरी है, मेरा जानना ना जानूँ मैं, ख़ुद भी ज़िद छोड़, कहा मानना कह दे तू, ख़ुद भी जाते हुए, कहानी अधूरी अब छोड़ी, नहीं जाती ये जीत हार की बातें हमें समझ नहीं आतीं क्या यक़ी है तुम्हें हम फिर जन्म लेंगे जो चित्र अधूरा रह गया रंग उसमें भर देंगे किरमिच पे अक्सर स्याही लम्बी, चल नहीं पाती तेरे इनकार की बातें हमें समझ नहीं आतीं ये जीत हार की बातें हमें समझ नहीं आतीं श्यामिलि