मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ

मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ
ख़ामोश रहूँ या कुछ मैं कहूँ
जाते हुए लम्हों को गिनो
आधे आधे कब तक मैं जियूँ
पर सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ

फूल जाने क्यूँ, लाल है
सुर्ख़ रहने लगे मेरे, गाल है
लहराते हर तरफ़ क्यूँ, टूलिप है
जैसे क़ुदरत का, कमाल है

दिल चाहे मेरा, मैं पंछी बनूँ
इधर उधर फिर उड़तीं फिरूँ
सब खुली आँख में बंद करूँ
इस शोर की ख़ामोशी को सुनूँ

मौसम ने ली फिर अँगड़ाई
भीनी भीनी ख़ुशबू आई
पल भर में घटा उड़ जाती है
कभी शाम ढलें, कभी धूप आई

जाने कैसी ख़ामोशी है
सर्द सी गर्माजोशी है
हाँ, कहने को मैं होश में हुँ
फिर क्यूँ छाईं मदहोशी है

किधर से चली, किधर को आई
संग चलती रही सदा परछाई
दिन रात की नहीं बात है
है भीड़ के संग संग तन्हाई

मैं क्या बोलूँ, मैं क्या देखूँ
विचार में हूँ, मैं क्या सोचूँ
दिन घड़ियाँ बन बन बीत गए
मैं दौड़ में हूँ, मैं कैसे रुकूँ
मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ
मैं सोच में हूँ, क्या तुमको लिखूँ

श्यामिली









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