रंगो में कुछ रंग



रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है
है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है
पीने में खारा जल होते है
पर  दूर से निर्मल दिखने लगें है
रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है
है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है

है कौन सी मंज़िल समझाए कोई
कभी सागर, कभी बूँद, बन जाए वही
मैं जितना भी समेटूँ, वो बिखर जाता है
कितना को ख़ुद जलूँ, वो बुझाए कभी

वो बेबस कहाँ, लाचार से दिखने लगें है
वो अब भी अंधेरों की तलाश में है,
हम चरागो से सदा उनके लिए जलें है
रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है
है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है

ना कोई था तुमसा, ना कभी और भी होगा
ना देना धोखा, ना ये जीवन बसर होगा
ये भी सच था किसी एक दिन का
आज अरसे बाद, सच कुछ और ही होगा

चाहो ना चाहो, वो पल याद आने लगे है
हँसते-हँसते भी, हमें रुलाने लगे हैं
एक उम्र गुज़री थी जिसकी पनाह में
आज नज़र मिलाने से भी, कतराने लगे है
रंगो में कुछ रंग ऐसे छिपने लगें है
है कुछ, और कुछ ही दिखने लगें है

ये जीवन क्या है, बस बहते जाना है
कहीं नदी, कहीं नालों में घर बनाना है
इस रात की सुबह तो होके रहेगी
वक़्त कैसा भी हो, इसको तो बीत जाना है

हालातों पे फिर क्यूँ, अश्क़ बहाने लगें है
कल की तलाश है, और आज गवाने लगें है
श्रद्धा सबुरी भी, फिर भुला दी क्यूँ
ऋतु आई, देखो, फल पेड़ों पर आने लगे है
जैसे जैसे उम्र की, कनके पकने लगीं है
रंगो में छिपे रंग साफ़ दिखने लगें है

श्यामिली





































Comments

  1. Good one..somewhere resembling

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  2. Powerful words 👌👏👏👏

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  3. बहोत अच्छा लिखा है... madam

    @vikram

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  4. ये जीवन क्या है बस बहते जाना है
    कहीं नदी कहीं नालों में घर बनाना हैइस रात की सुबह तो होके रहेगीवक़्त कैसा भी हो इसको तो बीत जाना है .....बहुत ही सुन्दर ..

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  5. Thank you so much all, for your kind words

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