ज़िन्दगी है जनाब
हरपल नए, रंग दिखाती है
मैं रोती हूँ, ये मुस्कुराती है
हरदम नया, सिखाने को
जाने, क्या क्या खेल रचाती
है
ये ज़िन्दगी है जनाब,
क्या से, क्या हुए जाती है
सोचूँ, तो सफ़र तन्हा था
आसरा किसी का, इस पर लगता है
जो एहसास, कभी अपना था
किसी और का, हुआ लगता है
दिल की, दिल में भी ना रहें
ना वो बात, होठों तक आती है
ये ज़िन्दगी है जनाब,
क्या से, क्या हुए जाती है
दूर तलक, धूल सी है जमी
जैसे कोई, आया ना गया हो
छूने को, इस कद्र है तरसी
हर कतरा, राह में बिछा हो
ना याद कोई, पर किसका है तस्सवुर
आईने में सूरत, किसकी नज़र
आती है
ये ज़िन्दगी है जनाब,
क्या से, क्या हुए जाती है
मैं गलत, वो सही
बस ये, रट लिए
बैठी है
सज़ा, ना किये की
भी रही
लडकपन का, हठ लिए बैठी है
दीदार हो ना हो, ज़ख्म रहेगा
मर्ज़ पर ऐसी, दवा किए जाती
है
ये ज़िन्दगी है जनाब,
क्या से, क्या हुए जाती है
श्यामिली
Lovely 👌
ReplyDeleteAti Sundar 👌👌
ReplyDeleteWow 👏
ReplyDelete👏
ReplyDelete👍👍🤗🤗
ReplyDelete👏👏👏👏👍👍
ReplyDeleteVery true Mam,
ReplyDeleteजिंदगी है ये,रेत की तरह निकल जाती है, very good writeup🙂🤔.
ReplyDeleteLovley...
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