कृष्णमय होलें

 


जब भी बोलो

सोच के बोलो

मुँह जब खोलो

कृष्ण ही बोलो

उसकी महिमा

क्यूँ तुम भूले हो

कृष्ण को भज लो

कृष्ण के होलो

 

ना कुछ तेरे

बस में बन्दे

माया के है

ये सारे फंदें

अपने कर्म कब

बक्शायेगा

तेरे कर्म है

मवाद से गंदें

  

हर पल करता

कोई आरजू है

तन मन से लेकर

हर श्वास में बू है

एक जुबां है तेरी

जो शहद दे सकती

उसको भी जहर सा

बांटता क्यूँ है

 

एक पल काफी है

तुझे बदलने को

एक हल काफी है

मुश्किल से निकलने को

तू उठे इस लिए ही

गिराया है उसने

उसका आचल काफी है

तेरे सँभलने को

 

शरण कृष्ण की

अब तो लेंले

सखा है वो

सखा से खेंले

कृष्ण नाम

को थोडा पी ले

कृष्णमय जीवन

अब तो जींले

 

 

श्यामिली

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