ख़ामोशी
जाने
कौन छू गया,
इस
बहती सी ख़ामोशी में
हम
उठ के चल दिए थे
अपनी
ही गर्माजोशी में
कितना
पलट पलट के देखा
ना
दिखी हमें फिर तेरी राह
बस
मुड़के देखते रह गए,
सूखे
पत्तों को इक निगाह
वही खनक,
वही एहसास था
लगा तो था,
की, अब भी, वो पास था
बरसों बरस का दर्द,
मोम सा हुआ
ना याद रहा,
कैसे हुए थे हम तबाह
और
मुड़ मुडके देखते रह गए,
सूखे
पत्तों को इक निगाह
ये इश्क नहीं है,
तो क्या है ज़ालिम
ना भुलाये से भूला
ना भगाए से गया
कितनी दूर भी चलें जायें
फिर लौट वही आते हैं
फिर
शाम में तन्हाई है
फिर
शब है मदहोशी में
जैसे
फिर कोई छू गया,
इस
बहती सी ख़ामोशी में
बड़ा
वक़्त हुआ,
अब
कोई तो, फैसला कर
कर
“ना” ही, सही चाहे,
कुछ
काम तो मुकम्मल कर
यूँ
तो याद नहीं है मुझे
तेरी
साँसों की गर्मी
तुझे
याद है तो याद दिला
कौन
से रंग की थी तेरे चाह
कितना
पलट पलट के देखा
ना
दिखी हमें फिर तेरी राह
देखे
तो देखते रह गए,
सूखे
पत्तों को, बस, इक निगाह
श्यामिली
Wah wah👌👌
ReplyDeleteVery hard to find out the theme ,but it's heart touching "YAADEIN" 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteHare Krishna 🙏🙏
ReplyDeleteKya likhti ho,wah !
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteNice ma'am 👍👍
ReplyDeleteTruly amazing nd well said 👏 👏👏 Hare Krishna 🙏
ReplyDeleteDil ko chooh leti hai baatein aapki👏👏👏
ReplyDeleteखामोशी में भी काफी दर्द है।
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