कोई दूर, कोई पास

 

जिसे जितना लुटाया,

वो उतना ही पास आया

जिसे चाहा दिल से पाना

उसने सदा ही दिल दुखाया

 

मानो ये जीवन,

जैसे एक तितली

चाहो ना चाहो,

राहें यूँ मिलती

नूर तो मिला उसका,

मिल ना पाया उसका साया

पर, जिसे जितना लुटाया,

वो उतना ही पास आया

 

बिन माँगे मिला वो

सम्भाल पर ना पाए

वो आएगा कभी क्या

हम घर ना जा पाए

धूप भी अब तो ढल गई

बस घेरने को है अब छाया   

पर, जिसे जितना लुटाया,

वो उतना ही पास आया

 

क्या मिलेगा तुमको

यूँ मुझको मनाके

मेरे ज़ख्मों को छूके

मुझे रास्ते पर लाके

छूना कुछ इस तरह से

कहीं बिखरना जाए काया

तुम्हे जितना लुटाया,

तुम्हे उतना ही पास पाया

 

श्यामिली


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