बारिश
आज भी है तन्हा मगर, किसी फ़िराक में लगती है कोई आज भी है सूखा किसके इंतज़ार में जगती है क्यूँ बिन मौसम है बारिश याद में किसकी बरसती है कल ही की तो बात थी पूनम की चांदनी रात थी लौट गया दरवाजे से कोई उलझी जैसे कायनात थी मृत जैसी ठंडी साँसे थी आज फिर क्यूँ सुलगती है क्यूँ बिन मौसम है बारिश याद में किसकी बरसती है बरसे जैसे पहली बूंदें हो सपने में आँखें मूंदे हो मन को उडाये, दूर ले जाये फिर खुदको , खुदसे गूंधे हो थी चूर चूर , बिखरी बिखरी किसको समेटे लगती है किसे भिगोने के लिए बिन बात बरसने लगती है क्यूँ बिन मौसम है बारिश याद में किसकी बरसती है श्यामिली