उड़ान
आज हूँ मैं बेचैन बड़ी
सोचूँ यूँही खड़ी खड़ी
क्या धरती सचमुच गोल है
सच है या फिर झोल है
फिर कैसे, ऊपर नीचे है
क्या ऊपर अम्बर, पाताल नीचे है
क्या सपनो की कोई दुनिया है
जो हरदम मुझको खींचे है
मैं रहूँ यहाँ, या जाऊँ वहाँ
इस पल को जियूँ, या बहूँ तनहा
मैं पानी की कोई बूँद नहीं
मैं इन्सा हूँ, हूँ कर्म से बंधी
मेरी मर्ज़ी मैं खुल के जियूँ
मेरी मर्ज़ी मैं आँसू पियूँ
मैं ख़ुद के मुताबिक़ चलती हूँ
फिर दूजे से क्या आस करूँ
क्यूँ है परेशां, क्यूँ ऐंठा है
तू किसके लिए, अब बैठा है
तू कर्म करे, मैं रहूँ गमगीन
अब ऐसा नहीं कोई ठेका है
दुनिया क्या कहती-सुनती है
अब खुदसे मेरी बिनती है
मैं ख़ुद से क्यूँ शर्मिंदा रहूँ
बात रहती बनती बिगड़ती है
अब मैं कितना और बेचैन रहूँ
धीरज धर लूँ या मन की सुनूँ
मन्थन से जो ये पखेरू मिले
अब रात दिन मैं उड़ती फिरूँ
अब रात दिन मैं उड़ती फिरूँ
Wow amazing love you
ReplyDeleteVery catchy👌 much luv 😘
ReplyDeleteZabardast likha hai aaj aapne madam.
ReplyDelete@
Vikram
Bohat sahi ..... Ati Sundar....
ReplyDelete👏👏
ReplyDeleteWah wah👏👏
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