ज़िंदगी
जितना इसे सम्भाला
उतनी फिसलतीं गई
आहिस्ता आहिस्ता से
यारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई
उसकी हर अदा ने
मुझको यूँ दीवाना किया
मय को भूले भी
और हर पल मयखाना किया
उसकी उसकी रह गई
बाक़ी मय उतरती गई
आहिस्ता आहिस्ता से
यारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई
सितमग़र का सितम देख
उफ़्फ़ करने पे है पाबंदी
नियम भी उसके, चाल भी उसकी,
रुकने थमने पे है पाबंदी
जाने क्या उम्मीद है
जाने क्यूँ सिहरतीं गई
आहिस्ता आहिस्ता से
यारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई
क्या पाया, क्या रह गया
कुछ हाथ आया, कुछ बह गया
कैसे मुझको भूला वो
कैसे वो सब कह गया
कैसी उधेड़ बुन है ये
कैसे मैं उलझती गई
आहिस्ता आहिस्ता से
यारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई
कैसी ये रफ़्तार है
ना रुकने का नाम लेती है
चाहे हसलो, चाहे रोलों
ना समझने का मौक़ा देती है
जितना इसको समझी मैं,
उतना मैं उभरती गई
आहिस्ता आहिस्ता से
यारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई
श्यामिली
Priceless!!! Keep taking chances nd having funnn 🤗
ReplyDeleteThanks ma’am
ReplyDeleteMadam,
ReplyDeleteAaj to zindagi ko bht acchi tarah likha.
Very nice presentation.
@vikram
आहिस्ता आहिस्ता से
ReplyDeleteयारों,
ज़िंदगी गुज़रती गई..truth of life..very noce
Nice
ReplyDeleteहम जब तक यह जान पाते हैं कि ज़िन्दगी क्या है तब तक यह आधी खत्म हो चुकी होती है
Very nice mam
ReplyDeleteVery nice Mam
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