मेरा ख्वाब


आ गया वो दिन
था जिसका इंतज़ार
वो बहार किधर गई,
जो रही थी मुझको निहार

रह रह कर क्यूँ
सफ़र फ़िर याद आता है
अब ना कोई है रास्ता,
ना कोई भाग्य विधाता है

सोचा था आराम होगा,
            कुछ सुकूं भी मिलेगा
बचपन जवानी चाहे ना मिली
            बुढ़ापा तो चका चक खिलेगा

लेंगे फ़िर फुरसत में
            हम प्रभु का नाम
खेलेंगे पोते पोतियों से
            अभी करले कुछ काम

चंद नोट और जेबों में डालें
            अगली पुश्तों का पैट भी भरलें
कुछ जमीं तो नाम है अपने
            थोड़ी सी कुछ और भी करलें

आज ये सब पास है मेरे
            ना किसीका रहा इंतज़ार
अब खाली मन खाली घर है
            ना देखे दिखे वो बहार

है सोफ़ा मेज़ पलंग सोने का
            पर भूख प्यास ना मन बचा है
महंगे कपड़े, महंगा सामान
            सोने चांदी से घर जचा है

क्या यही थी मेरी
            जीवन भर की ख्वाहिशे
खाली हाथ, बिना कोई साथ   
            कौन अब पूरी करें फरमाईशें

मुझे लगा, मैंने सबसे
            कभी तो था, खूब निभाया
आपके पास कब समय था     
            सामने से जवाब ये आया

सब खुश है, अपने अपने
            घोंसले में जाके  
अब खूब फुरसत भी है         
            ना कोई मेरी जिंदगी में झांके

किससे पुछूँ, सवालात ज़िगर के
            कौन मन को समझाए
क्या फ़िर से, शुरुआत करूँ
            काश बचपन मेरा लौट आए

अब की बार खुलके जियूँगा
            लूटूँगा खूब जवानी के लुत्फ़
घूमूंगा फिरूँगा लेख लिखूँगा
            लूँगा छुट्टी भी, रहूँगा सुस्त

इक बार तो सुनले मेरी 
            मेरे कृष्ण कन्हाई
उम्र फ़िर लिखने को दो
            मैंने रो कर गुहार लगाई

टुटा कुछ खिड़की पर
कुछ आवाज सी आई
भ्रम टूटा था मेरा
            पोह थी फटने को आई
           
तभी घड़ी ने दी आवाज़
      आज बदला था उसका मिज़ाज
ना कहीं कोई झुर्रियाँ थी छाई
            पर उम्र का था नया सा अन्दाज़

उम्र तो अभी भी थी
            कहीं बीच मझदार
शायद वो ख्वाब था मेरा
            मै नींद में था यार

खड़े हो गए थे मेरे रोंगटे
            देख अपने बुढ़ापे को
माथा भी था कुछ गीला
            मै कैसे रोकूँ अपने आपे को

मन ही मन में, मै हुआ
            रब अपने का शुक्रगुजार
मुझको मुँह माँगा मौका दिया
            मालिक तेरी कृपा है अपरंपार

है मालिक तेरी कृपा है अपरंपार


श्यामिली




Comments

  1. 👏👏👏👏👏👏👏👏👏

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  2. Wow!!! This is truly an Masterpiece reflecting complete synopsis of so called Life. It seems as if Audience itself are being made Part of the Journey of so called LIFE. Great thoughts n flavour to keep Readers intact about from beginning till last word.

    Bravo to You for gifting us such Wonderful n Mesmerizing Flowchart of Life.

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  3. Madam, This is really a masterstroke like 6 sixes on 6 balls, this is really mirror image of life from childhood to last breath.

    Very well presentation, everyone gets motivated and a little bit emotional.

    Keep going madam, we really need this type of motivation from you always and forever.

    @Vikram

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  4. Beutiful pottery of human life..

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  5. Wow bhabhi...
    Amazing piece.
    Deeply reflects that we must live our life in the present moment n not worry much abt future.
    Wonderful piece bhabhi

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  6. Itihaas se sikhte huye, Bahvisya ko dekhte huye, yaksh parshan phir ek baar, kyu nahi jita main vartmaan?
    Very good poem mam, 👌👏

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  7. Wastivk likkha orr bohat achchha BHI👌👍👍👍💐🙏

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