काश
किसीके फिक्र से बोझिल थी आँखे
काश काम, वो किसीके आती
काश, कुछ ऐसा ही, हो जाता
कुछ “उसकी
मैं” थोड़ी सी, बह जाती
काश वो कुछ, अपनी भी कहते
काश
मेरी कही भी, कुछ रह जाती
अपनी तो कहानी, रह गई अनकहीं
दास्ताने मोहब्बत, फ़िर कैसे
कहलाती
पड़ाव यूँ ही, पग पग पर
क्या
पता था, आते ही जायेंगे
हम मोड़ पर, देखते खड़े रहेंगे
वो छोड़-छोड़,
फिर चले जायेंगे
इम्तिहान ना मेरा, और लो
अब सांस
भी मुझको, नहीं आती
काश वो कुछ, अपनी भी कहते
काश
मेरी कही भी, कुछ रह जाती
बाद मुद्दत्तो के था, वो मुझको मिला
सोचा था,
थोड़ा फ़ासला आया होगा
अश्कों को था, ना जाने क्या हुआ
सैलाब के
सैलाब को, कैसे मैंने सुखाया होगा
तुझे इस कदर से, याद किया है मैंने
तेरी
याद भी, अब नहीं आती
अपनी तो कहानी, रह गई अनकहीं
दास्ताने मोहब्बत, फ़िर कैसे
कहलाती
अँधेरा ना जाने, छाया है कैसा
दस्तानों
से घिरी है हर जुबाँ
राह पर छाया है, कोहरा क्यूँ
क्यूँ भटक
रही है, हर फिज़ा
मिट्टी का घरोंदा, था मेरा
कैसे
किसीने कर दिया तबाह
थोड़ा रुक के बताया तो होता
क्यूँ
था मुँह फेरा, क्या थी वजह
पोह जैसी ही फ़िर, खिलके फटेगी
बुझती
नजरों में फ़िर, जलायेगी बाती
फ़िर होगा नयी शाम का इंतज़ार,
फ़िर याद
तुझे, फिर करेंगे साथी
ए यार मेरे, तू ये तो समझ
कैसे आस
तुझसे लगाई होगी
कैसे तुझको भुलाया ना गया
कैसे
रात मैंने बिताई होगी
मेरे-तेरे से कैसे उठ्ठी थी मै
कैसे
फ़िर हम पे लौट आई होगी
इक दिया और बुझाके
कैसे मन
की लों फ़िर जलाई होगी
उस बियाबान में, ना जाम उठता
ता-उम्र, प्यासी सी मै रह
जाती
तेरी तलाश की है, कुछ इस कदर
तेरी
कमी भी, अब नहीं सताती
काश मेरी कहानी कही तो जाती
काश फ़िर वो दास्ताने मोहब्बत
कहलाती
श्यामिली
👍👍👍👍👍👍👍👍👏👏👏. Awesome bhabhi
ReplyDeleteLovely 👌
ReplyDeleteMadam, zabardast likha hai aapne,aap kaise soch kr likh dete ho, har kisi k to bas ki baat nahin.
ReplyDeleteVery very beautiful presentation, keep going madam always.
@Vikram
👍👍
ReplyDeleteBeautiful 👍
ReplyDeleteबेहतरीन बहुत खूब
ReplyDeleteमुझे अभी भी आश्चर्य है ये कवित्री भाव आपके अंदर आया कैसे।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।