बारिश
जिसके आने से, मैं खिलती थी जिसके मिलने को, मैं तरसती थी झूम-झूम के नाचती थी झूम-झूम के, थिरकती थी आज वो जी का, जंजाल हो गई ज़िन्दगी बारिश में, बेहाल हो गई एक घटें का सफ़र, तीन घन्टे का हुआ सफ़र हुआ मुहाल , ना मांगी जाए दुआ कहीं गढ़ढे, कहीं खढ्ढे, कहीं जमा हुआ है पानी घर पर होते तो पकोड़े तलते पर बदल गई कहानी लफ्जों में भी कैसी नमीं आने लगी है लम्बा सफ़र हुआ जिंदगी थकाने लगी है ना आस बची ना प्यास बची बारिश की बूंदें भी हमको सुखाने लगी है दिल भी है कमबख्त ना माने ये कहीं अपनी ही दौड़ में ज़ाया करे जिंदगी क्या चाहे क्या मांगे ना इसको खुद पता बारिश के बहाने करें अश्कों को विदा कैसी होती थी बारिश अब क्या हो गई है कितना जी हूँ इसके संग पर लगती अजनबी है ना जाने क्यूँ ये अब मुझे भीगा नहीं पाती ना किसी को याद मेरी दिलाये ना किसी को मेरी याद है आती लगता है सपने भी अब, प्रैक्टिकल हो चुके है ना दिल दुखता है अब ज़ज्बात...