हाँ समंदर हूँ मैं, इसलिए ख़ामोश रहती हूँ


हाँ समंदर हूँ मैं, 
        इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
जाना नहीं कही मुझे,
        फिर क्यूँ मीलों बहती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं, 
        इसलिए ख़ामोश रहती हूँ

मन करता है कभी,
        शोर मचाऊं, झरनो की तरह
मन करता है कभी,
        लहराती जाऊँ, झीलों की तरह
मैं ले ना डूबूँ सबको,
        इस बात से फिर मैं डरती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं, 
        इसलिए ख़ामोश रहती हूँ

मन करता है कभी,
        बचपन जीं लू बच्चों की तरह
मन करता है कभी,
       अम्बर छूँलू बाजों की तरह
कुरूप ना करदू मैं सबको,
        अपने रूप-सीमा में रहती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं, 
        इसलिए ख़ामोश रहती हूँ

आँधी आए, तूफ़ाँ आए,
        हर हाल में यूँ ढलना होगा
इक शून्य की तलाश है,
        उस शून्य में ही मिलना होगा
हूँ असीम,
        असीम समझोते ही किया करती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं, 
        इसलिए ख़ामोश रहती हूँ

  श्यामिली

Comments

  1. Madam
    बहोत ही बेहतरीन लिखा हैं, हर बार पहले से बेहतर करते हों.
    @vikram

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  2. Superb compilation and expression of undisclosed wishes those most of us came across during journey of our life.

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  3. हो समंदर तो क्यू खामोश रहती हो ।बहा दो सब अधूरे वादे वो जिन्दगी के नापाक इरादे ।जिनमें बसती है तन्हा करने की साजिशे और नाकाम मुहब्बत की न्वाअजीशे।।
    Perfect

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  4. Behtreen poem mam, par samander to kabhi -2 hi shaant hota hai.

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    Replies
    1. Go in deep sea, you will forget your existence

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  5. All well !!!!?? Kisko dubane walin hain aap par khamosh hain....

    By the way...nice lines and this the real sense how you have taking everyone along with you. Great work !!!!

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  6. हाँ समंदर हूँ मैं
    इसलिए ख़ामोश रहती हूँ.. श्यामली जी आपकी सोच और विचार दोनों परिलक्षित होता है ..इस कविता में ..

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