हाँ समंदर हूँ मैं, इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं,
इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
जाना नहीं कही मुझे,
फिर क्यूँ मीलों बहती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं,
इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
मन करता है कभी,
शोर मचाऊं, झरनो की तरह
मन करता है कभी,
लहराती जाऊँ, झीलों की तरह
मैं ले ना डूबूँ सबको,
इस बात से फिर मैं डरती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं,
इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
मन करता है कभी,
बचपन जीं लू बच्चों की तरह
मन करता है कभी,
अम्बर छूँलू बाजों की तरह
कुरूप ना करदू मैं सबको,
अपने रूप-सीमा में रहती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं,
इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
आँधी आए, तूफ़ाँ आए,
हर हाल में यूँ ढलना होगा
इक शून्य की तलाश है,
उस शून्य में ही मिलना होगा
हूँ असीम,
असीम समझोते ही किया करती हूँ
हाँ समंदर हूँ मैं,
इसलिए ख़ामोश रहती हूँ
श्यामिली
Beautiful lines di!😍👍
ReplyDeleteThank you ji
DeleteMadam
ReplyDeleteबहोत ही बेहतरीन लिखा हैं, हर बार पहले से बेहतर करते हों.
@vikram
Thank you
DeleteSuperb compilation and expression of undisclosed wishes those most of us came across during journey of our life.
ReplyDeleteThank you so much
DeleteVery nice line mam
ReplyDelete@ vikas
Thank you so much
DeleteNice lines....
ReplyDeleteहो समंदर तो क्यू खामोश रहती हो ।बहा दो सब अधूरे वादे वो जिन्दगी के नापाक इरादे ।जिनमें बसती है तन्हा करने की साजिशे और नाकाम मुहब्बत की न्वाअजीशे।।
ReplyDeletePerfect
Bahut khoob sheets ji.
ReplyDeleteThank you sooo much
DeleteBehtreen poem mam, par samander to kabhi -2 hi shaant hota hai.
ReplyDeleteGo in deep sea, you will forget your existence
DeleteGood thought mam
ReplyDeleteAll well !!!!?? Kisko dubane walin hain aap par khamosh hain....
ReplyDeleteBy the way...nice lines and this the real sense how you have taking everyone along with you. Great work !!!!
हाँ समंदर हूँ मैं
ReplyDeleteइसलिए ख़ामोश रहती हूँ.. श्यामली जी आपकी सोच और विचार दोनों परिलक्षित होता है ..इस कविता में ..