कुछ थकी थकी है ज़िंदगी, कुछ हलचल हो तो, हिल जाए
कई साल बैठे बीत गए
अब जाके वो साल आए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, हिल जाए
घर दफ़्तर के सफ़र में थे
ख़ुद बेज़ार नज़र में थे
पहिए पे जो दिन आ जाए
इक कारवाँ को साथ लें आए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, हिल जाए
कुछ वो, ना समझ पाएँ मुझे
कुछ मैं, ना समझ पाऊँ उन्हें
दोनो ही वक़्ता बन जाए
अनजाने में, दिल खुल जाए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, हिल जाए
ना कोई वादा, किसी से हो
ना उम्मीद ज़्यादा, किसी से हो
कुछ बेरंग पिछले, धूल जाए
कुछ नए रंग जो, खिल जाए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, हिल जाए
आकाश नया जो, मिलता रहे
दिल अपना, चमन सा, खिलता रहे
सफ़र बदलता, रह जाए
दिन बनते-बिगड़ते कट जाए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, खिल जाए
श्यामिली
Madam, aapne bht hi shaandar likha hai, har kisi life se kuch milta julta...Bht hi dil se likha hai aapne aur har baar pehle se behetreen.
ReplyDelete@ vikram
आकाश नया जो, मिलता रहे
ReplyDeleteदिल अपना, चमन सा, खिलता रहे
सफ़र बदलता, रह जाए
दिन बनते-बिगड़ते कट जाए
कुछ थकी थकी है ज़िंदगी
कुछ हलचल हो तो, खिल जाए !! :) bohat Sundar likha hai !
👏👌
ReplyDeleteTruth of life ...well expressed
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