किधर को वीरानी, जाने लगी है
आवाज़ें सन्नाटों की, आने लगी है
कुछ तो ख़ुमारी, छाने लगी है
बेचैन है दिल, हालत भी ख़स्ता है
किधर को वीरानी, जाने लगी है
वो रु-ब-रु हुए भी, तो जाते हुए
ना जी भर के देखा, ना वादें हुए
बईमानी, क्यूँ मुझको, भाने लगी है
बारिश में बूँदे, क्यूँ, भिगाने लगी है
बेचैन है दिल, हालत भी ख़स्ता है
किधर को वीरानी, जाने लगी है
दिल है आवारा, क्या कहे इसको
चाहे बनना बंजारा, कहता रहे मुझको
बिन मौसम कोयल, क्यूँ, गाने लगी है
दीवाना क्यूँ मुझको, बनाने लगी है
बेचैन है दिल, हालत भी ख़स्ता है
किधर को वीरानी, जाने लगी है
ना रातों में नींद है, ना सुबहा में लाली है
उजली वो राहें थी, घनघोर, अब वो काली है
उम्मीद दिल में, क्यूँ, सुलगाने लगी है
याद उनकी, अब क्यूँ सताने लगी है
बेचैन है दिल, हालत भी ख़स्ता है
किधर को वीरानी, जाने लगी है
दिल बच्चा तो था, बच्चा ही रह गया
सपना बचपन का, कच्चा ही रह गया
बिन मौसम बदली, क्यूँ, छाने लगी है
सौंधी मिट्टी की ख़ुशबू, क्यूँ, आने लगी है
बेचैन है दिल, हालत भी ख़स्ता है
किधर को वीरानी, जाने लगी है
श्यामिली
Wow wow
ReplyDeleteMarvellous
ReplyDeleteMast likkha hai ji
ReplyDeleteVery nice, mam
ReplyDeleteThis is your hidden talent..well scripted.
ReplyDeletethank you sooo much sir
DeleteNice lines mam
ReplyDeletethank you ji
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