मन का शोर


इतना शोर क्यूँ है भाई
इतना शोर क्यूँ है भाई
सुबह से शाम,
होने को आई
मेरा दिल
टूट के बिखर गया
और आवाज़,
किसीको ना आई

क्यूँ आँख,
मेरी गीली है
हँसी मेरी,
किसने ले ली है
ए दोस्त,
तू भी लापता है
देख तनहा,
तेरी सहेली है
एक मुस्कान,
ना मेरे चेहरे पे आई
दूर तलक,
फैल गयी तन्हाई
मन में इतना,
शोर क्यूँ है भाई
मन में इतना,
शोर क्यूँ है भाई
मेरा दिल,
टूट के बिखर गया
और आवाज़,
किसीको ना आई

आज शब्द नहीं,
है पास मेरे
ख़ामोशी का मंज़र,
क्यूँ मुझको खड़ा है घेरे
दर्द की सारे इम्तिहान,
पार हो गए    
मुझको टूटने से बचालो,
कोई तो यार मेरे
टूटते टूटते आज,
तुमको गुहार है लगाई
काश तू लौटे,
उम्मीद फिर दिल ने लगाई     
सुबह से शाम,
होने को आई
मेरा दिल,
टूट के बिखर गया
और आवाज़,
किसीको ना आई

  
आज, यहाँ,
शब्दों की हड़ताल है
बदला तेरा रूप,
बदली हुई तेरी चाल है
दिल में मचा,
मेरे क्यूँ हूड़दंग है
दाल में काला है,
या काली तेरी दाल है
हर एक अश्क़ ने,
बात ये बतलाई
तुझसे ही हूँ मैं,
कैसी मुझसे रुसवाई
मन में इतना,
शोर क्यूँ है भाई
के, मेरा दिल,
टूट के बिखर गया     
और आवाज़,
किसीको ना आई

समझाया था,  
मैंने तुझको कितना    
सताया है,
तूने मुझको कितना     
ना समझ, ना-समझ मुझे,
मेरे हमराही
रस्ता दिखाया था,
मैंने तुझको, कितना
फिर भी ठोकर,
कैसे तूने खाई
फिर भी तेरी चाल,
कैसे डगमगाई
सुबह से शाम,
होने को आई
मेरा दिल,
टूट के बिखर गया
और आवाज़,
किसीको ना आई

ना भूल तू, वो पल,
जो साथ थे बिताए
दिल को समझालो,
ना दूजे राह पे भटकाए
अपनी एक मंज़िल,
अपना एक सफ़र है
मैं कितना और टूटूँ,
के मुझको तू मनाए
अब बस भी कर,
मेरी आँख, भर  है आई
अभी अभी ही तो,  
तुमने थी माँग सजाई  
तेरा प्यार है मेरी,
उम्र भर की कमाई
ख़बरदार जो ये दौलत,
किसी और पे लुटाई
मन में इतना,
शोर क्यूँ है भाई
मन में इतना,
शोर क्यूँ है भाई
मेरा दिल,
टूट के बिखर गया
और आवाज़,
किसीको ना आई

अबला नहीं हूँ,
मैं, नारी हूँ
संगिनी हूँ,
और मंगलकारी हूँ
साथ जब तक हूँ,
तो ठीक है
धोखा मिला,
तो तुझपे भारी हूँ
रूक, देख,
तेरी साँस लड़खड़ाईं
मेरे टूटने से पहले,
ना सज़ा तूने पाईं   
तेरे मन ने भी,
हाहाकार मचाई
तेरा दिल भी,
टूट के बिखर गया     
और आवाज़,
किसीको ना आई

दुनिया का दस्तूर,
ना निभाऊँगी
जीते जी ना,
तुझको छोड़ पाऊँगी
तू बेपरवाह,
किधर को चल दिया
वापस तुझे,
रास्ते पे लाऊँगी
वादा ना समझ,
है मैंने क़सम खाई
ना दूर जाने दूँगी,
ना दूँगी प्यार की दुहाई 
नाम मेरा भी,
श्यामिली नहीं
ठिकाने पे जो ना,
तेरी अकल लगाई   
अकेले अकेले, ना मेरा दिल,
टूट के बिखरा    
तेरे टूटने की,
आवाज़ भी संग आई

आ टूट के,
             फिर एक, होंलें हम
कड़वे लम्हे,
            अश्क़ो से धोलें हम
भूल जाए,
            कोई कभी भटका था
पुराने सपने,
            इक बार फिर, संजोलें हम
तू लौट आया,  
           मेरी साँस लौट है आई
कैसा ग़म,
         काहे की तन्हाई
कोई कोई ही तो,
        जाके लौट आता है
मैं ख़ुश हूँ,
        जो मैंने क़िस्मत ऐसी पाई

श्यामिली

Comments

  1. Wow very nice lines keep writing

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  2. Awesome Mam..its really really Good....

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  3. Very deep.. .. Very touching lines.. Please keep writing..

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. Sensational...... 💓 Heart Touching.......

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  6. Keep it up.. A un explored part of u..

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  7. Such a long gap 💞 Yet another heartfelt poem 👌👌👌 I m touched !!!

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  8. Befitting in the prevailing situation. May you be blessed with more such finer aspects which touch upon d chords in most apt n articulated manner!!!
    आज शब्द नहीं,
    है पास मेरे
    ख़ामोशी का मंज़र,
    क्यूँ मुझको खड़ा है घेरे
    दर्द की सारे इम्तिहान,
    पार हो गए
    मुझको टूटने से बचालो,
    कोई तो यार मेरे
    टूटते टूटते आज,
    तुमको गुहार है लगाई
    काश तू लौटे,
    उम्मीद फिर दिल ने लगाई
    सुबह से शाम,
    होने को आई
    मेरा दिल,
    टूट के बिखर गया
    और आवाज़,
    किसीको ना आई

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  9. Thank you so much all, I have completed one year of continues publishing my blog on every Saturday, it was not at all possible without your continues support

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