गुज़ारिश

 

कहो थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

क्यूँ, रहे दिल की दिल में

राज़ कहना जो चाहूँ

कहो, थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

है दूरी जो अपनी

इसको कैसे मिटाऊँ

 

वो साया जो संग तेरे

लहरा रहा था

नया हमसफ़र कोई

तुमने चुना था

क्या होठो पे बातें

थी तुमने छुपाई

कहो याद मेरी

क्या इक पल ना आई

अटकले है बहुत

पूछ तुमसे ना पाऊँ

कहो थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

 

हाँ देखा था मैंने

नज़र का चुराना

तेरा, तन्हा वो होना

बहाने बनाना

मिला क्या है तुझको

अब तो, ज़ाहिर करो ना

थी, कभी हमसफ़र मै  

यूँ तो मुझसे, डरो ना

सफ़र और तन्हा

ना तय कर मै पाऊँ   

कहो थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

 

क्या है अपना पराया

बात ये तो नहीं थी

दिल से दिल ही मिला था

हथकड़ी ना लगी थी

ये बंधन जो तुमने

बाँध लिया था 

खुद इसको, ही बेडी

का दर्जा दिया था 

हजारों है मसले

कैसे तुमको सुनाऊँ

कहो थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

 

चलो वादा मुझसे

नया ये भी ले लो

चाहे इनकार समझो

चाहे इकरार ले लो

तुमको चेहरे की रोनक

मुबारक हो जानम

दो घड़ी देके मुझको

जख्म उम्रो के भरदो

है ये अंतिम गुज़ारिश

आगे रह मै ना पाऊँ  

अब तो, कहो थोड़ा तुम

थोड़ा, कह मै भी पाऊँ

 

 

श्यामिली

Comments

  1. दो घड़ी देके हमको , जख्म उमरों का भरदो . A virtual love of Meera .
    Not very easy to feel the same . 🙏🙏

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