मरहम
मरहम मत लगा
देना
नासूर को रहने दे अब मेरा
कुछ पल और इसको जीने दे
इसे हमदम रहने दे अब मेरा
तू न था जब, मेरे साथ
ये ही तो था, दिन और रात
दिखाये इसने, खूब तेरे ख़्वाब
रखा बांधे, इसने साथ तेरा
मरहम मत लगा देना
नासूर को रहने, दे अब मेरा
दुनियां ने, कितना समझाया
साथ इसका मेरा, छुट ना पाया
रिश्ता तू तो निभा ना पाया
साथ निभाया सदा इसने मेरा
मरहम मत लगा देना
नासूर को रहने दे अब मेरा
दिन ढला है, शाम भी
जाने दे
ना बेब्स बना, झूठ से
दिल बहलाने दे
ना छू, मेरे टुकड़ों को, बहाने से
ना जोड़ पाऊं, इस बार अक्स
मेरा
कुछ पल और इसको जीने दे
इसे हमदम रहने दे अब मेरा
बिन तेरे जीना सीख लिया
कर मौज, ना कर मेरी चिंता
तूने जो भी किया, क्या खूब किया
हमदम ना बना, हमगम ना
बन मेरा
मरहम मत लगा
देना
नासूर को रहने दे अब मेरा
कुछ पल और इसको जीने दे
इसे हमदम रहने दे अब मेरा
श्यामिली
Shandar...jabrdast.... jindabad
ReplyDeleteअपने नासूर के साथ कैसे जिया जा सकता है एक अच्छ उदाहरण अपनी कविता se कहा है.
ReplyDeleteमरहम मत लगा देना , नासूर को it's extrem feeling of love like Meera . It's proved that there is no limit of imagination . Super se upar ki thaught Madam ji,💯 me 101🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteWah, you stirred the inner chords of my heart. Beautiful, very nice.
ReplyDeleteB'ful composition ma'am 👌🙏
ReplyDelete👌👌
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