शोर

 ये कैसा ख़ामोशियों का दौर है

घनघोर सन्नाटा हर और है

सहम जाती है रूह, ये कैसा

पत्तों की सरसराहटों का शोर है


दिल आज फिर

सहमा सहमा है

आसमां भी बैचेन है

छाई काली घटा है

किसी ने क्या याद किया

कुछ तो हुआ जरूर उस और है

सहम गई है रूह, ये कैसा

पत्तों की सरसराहटों का शोर है


ना जाने किस से कैसे

तार हमारे जुड़ गए है

अंधेरे में चलते चलते

हम किधर, कैसे मुड़ गए है

ना मरहम ना दुआ

बस गहराइयों पर जोर है

सहम गई है रूह, ये कैसा

पत्तों की सरसराहटों का शोर है


आस कैसी फिर बंधने लगी

ओस की बूंदे जमने लगी

कू कू कोयल करने लगी

पोह की किरणे फटने लगी

ना दिल में आना अब भूले से भी

रास्ता अपना अब न तेरी और है

अच्छा है ये ख़ामोशियों का दौर है

घनघोर सन्नाटा हर और है

सहम गई है रूह, ये कैसा

पत्तों की सरसराहटों का शोर है


श्यामिली


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