बात ही कुछ और हों
हम
समझ ना पाए वो,
बचपन
की मजबूरियाँ
ज़रा
देखों तो,
आज ज़ंजीरों के शायद, जज़्बात ही कुछ और हों
अब
तो लफ़्ज़ भी
कम
पड़ने लगे
तेरी
खेरियत - ए - ख़बर,
मिले उस पार, तो, बात ही कुछ और हों
अब
बारिश भी
भीगा
ना पाए
कौन
सी धूप है यादों की
मुझसे तुझको सुखाए, तो, बात ही कुछ और हों
वक़्त बदला मौसम बदला,
पर
रूह ना बदल पायी
ज़िम्मेदारियों
को भी ख़ूब माने
मुझसे तुझको निकाले, तो, बात ही कुछ और हों
तेरे
क़रार से ही अब तो,
कुछ
क़रार मिले
बिछड़
बिछड़ कर भी हम
मिले फिर एक बार, तो, बात ही कुछ और हों
श्यामिली
बहुत खूब
ReplyDeleteSHAANDAAR 👏👏👏👏
DeleteATI sunder
ReplyDeleteLaaajawaab👏👏👏👏
ReplyDeleteATI sunder
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDelete🙋💁🙆🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteBahut khub👌👌👌
ReplyDeleteNice 👍👍
ReplyDeleteReally nice 🙏🙏
ReplyDeleteSo lovely 👏👏👏
ReplyDeleteNice mam
ReplyDeleteKya Baat Hai.. sunder
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