आज़ाद

हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए

अनबुने तारों से बँधते गए
पिंज़रो को घर समझते गए
सीरत अपनी थी, अनन्त होना
उलझ के रहे, और महंत हो गए
खोख्ली मिली, हर मंज़िल
ख़ौफ़ अपने क्यूँ नाबाद हो गए
हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए

आदमी हम बन गए मंगल से
जानवर भले हमसे जंगल के
बिन बात, हवा पानी दूषित किया
ढोल पीटे, हम समझदार हो गए
ना जाने किसको हराने की चाह थी
ना जाने कबके ख़ुद बर्बाद हो गए
हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए

भाई बहन अब संयुक्त परिवार है
माँ बाप के हालात भी कुछ ख़ार है
ख़ून पिलाके सीचाँ जिस माली ने
नई बहार के आते, उनसे बेज़ार हो गए
माँ बाप हिस्से में, किसके, ना आए
हर कोई वारिस-ए- जयदाद हो गए
हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए

अपने मज़हब अपने धर्म में बँट गए
अपनी जात अपनी ज़बा को रट गए
तार तार करते गए, हर माँ का दिल
बेटी की रूह को भी बाज़ार कर गए
ऐसी शोहरत किस काम की “श्यामिली”
अंदर चमन उबलता रहे, बाहर शंखनाद हो गए
हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए

वो कोई और ही ख़ून था,
जो दूसरो की ख़ातिर मिट गया
आज अपना, अपनो को गिराने में,
भरे बाज़ार, ख़ुद ही बिक गया
ना भूल, जीवन चक्र, जाने कब झूल जाएगा
ना कहना, जाने कब गुलिस्ताँ से खाद हो गए
हम थोड़ा क्या आबाद हो गए
लगता रहा, हम आज़ाद हो गए


श्यामिली  

Comments

  1. बहोत ही बढ़िया... madam


    @vikram

    ReplyDelete
  2. ना भूल, जीवन चक्र, जाने कब झूल जाएगा
    ना कहना, जाने कब गुलिस्ताँ से खाद हो गए...बहुत खूबसूरत तरीके से पंक्तिबद्ध किया है।👍👍

    ReplyDelete
  3. Appreciate 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

प्रेम

परिवर्तन

Stress Stress Stress