संभालों ना

हुई शाम फ़िर से, जवान है
हसरतों में आया उफान है
जलते- भुझते ये तारें है
चम-ता हुआ फ़िर चाँद है
 
बिखरा बिखरा सा काजल है
तेरी ज़ुल्फ़ है या कोई बादल है  
लाल सुर्ख हुए से गाल है
ढलका ढलका सा आँचल है
 
न नींद खुले, ना ये हो सपना
मिश्री सी घुले, चाहे तपना
तुम हो या भीनी सी है ख़ुशबू
दिल की धड़कन का, शोर है अपना
 
नाज़ुक हो, जैसे, कली हो तुम
नमकीन मूँग सी, फलीं हो तुम
मयखाने भी हो जाए शर्मिंदा
खून से नहीं, मय से पली हो तुम     
 
नज़र से नज़र मिलालो ना
तुम्हारा हुँ मैं, जतालो ना 
मैं टूट के फिर जुड़ जाऊँगा 
खेलो दिल से, संभालों ना
खेलो दिल से, संभालों ना
 
श्यामिली








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