संभालों ना
हुई शाम फ़िर से, जवान है
हसरतों में आया उफान है
जलते- भुझते ये तारें है
चम-चमता हुआ फ़िर चाँद है
बिखरा बिखरा सा काजल है
तेरी ज़ुल्फ़ है या कोई बादल है
लाल सुर्ख हुए से गाल है
ढलका ढलका सा आँचल है
न नींद खुले, ना ये हो सपना
मिश्री सी घुले, चाहे तपना
तुम हो या भीनी सी है ख़ुशबू
दिल की धड़कन का, शोर है अपना
नाज़ुक हो, जैसे, कली हो तुम
नमकीन मूँग सी, फलीं हो तुम
मयखाने भी हो जाए शर्मिंदा
खून से नहीं, मय से पली हो तुम
नज़र से नज़र मिलालो ना
तुम्हारा हुँ मैं, जतालो ना
मैं टूट के फिर जुड़ जाऊँगा
खेलो दिल से, संभालों ना
खेलो दिल से, संभालों ना
श्यामिली
Superb 👍 Ma'am
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteVery Nice
ReplyDelete👌👌
ReplyDelete�👌👌�
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery Nice Ma'am. 👍
ReplyDeleteVery nice ma'am 👍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteआज तो शब्द ही नही है
ReplyDeleteमैं तो निशब्द हूं...... madam
@vikram
Are We missing Havelock Island!!! Perhaps Not!! May be my guess but it's more of a inner self Nirvana n Contentment which is reflected through Happiness Or is it PR calling. Too melodious for a lovely evening. May Almighty bless you with many more such colourful thoughts.
ReplyDeleteAwesome 👌
ReplyDeleteAmazing 👍👍
ReplyDelete