यादें

 


शाम नूरानी, गाने लगी

हलके से, मुस्कुराने लगी

दिल में कैसे ज़स्बात उठे

फ़िर याद किसी की, आने लगी

 

ये सफ़र तो था, तन्हाइंयों का

इसकी कहानी, क्या कहिये

खुद उधेढ़े मैंने, बुन बुन के

सपनों में इसके, ना बहिये

ना दिल तोडा, अपना किसी ने

ना कारगार, कोई मरहम हुआ  

रह रह कर फ़िर, इस दिल को

रह रह कर फ़िर, इस दिल को

याद किसकी, सताने लगी

दिल में फ़िर ज़स्बात उठे

फ़िर याद किसी की आने लगी

 

क्यूँ दिल को, बेहाल किया

मन ही मन तो, मनाया था

किस की राह, देख रहा है ये

इस रस्ते कभी, ना कोई आया था

मंजिल कैसी, है कैसा सफ़र

ना मिला कोई, अनजाने में

किसका साया है, कंधें पर

जाने किससे मैं, कतराने लगी  

दिल में फ़िर ज़स्बात उठे

फ़िर याद किसी की आने लगी

 

आईना मुझसे, है पूछ रहा

किसके जानिब, कोई सजदा करूँ

लहू ज़िगर का, कहने लगा

किसकी खातिर, और कैसे बहूँ

किसी नज़र का नूर, जो मिल जाए

मज़ा जाम सा हो, दवाखाने में

कोहरा सा कैसा, छाने लगा

तस्वीर मै किसकी, बनाने लगी  

दिल में कैसे ज़स्बात उठे

फ़िर याद किसी की आने लगी

 

बैचैनी है बड़ी, कैसे चैन आए

दिल आया, ना आएगा किसी पर

अब कौन इस दिल को समझाए

मतलबी दुनिया, कैसे मिले हमसफ़र

तड़पना और बिखरना, मुकद्दर है बना

आह क्यूँ आई वीराने में

ना धुआं उठा ना चिंगारी

ना धुआं उठा ना चिंगारी

मैं फ़िर किसको दफ़नाने लगी

दिल में कैसे ज़स्बात उठे

फ़िर याद किसी की आने लगी

 

 

श्यामिली


Comments

  1. "खुद उधेड़े मैंने बुन बुन के " क्या लाइन है मैडम . It's infinity of imagination . लम्हों में पूरे जीवन का सफर । वास्तव में कवि की कल्पना का कोई छोर नहीं ।🙏🙏. Dinesh Sharma

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