दिल बच्चा ही रह गया

 रात का हुआ दिन

 दिन से फिर रात हुई

 मन ख्वाहिशों से ग्च्चा ही रह गया

 उम्र तो मेरी ढल गयी

 पर दिल बच्चा ही रह गया


 कुछ दोस्त मिले दोस्त के रूप में

 छाओ करते रहे कड़ी धूप में

शाम ढली तो

 शाम ढली तो

 मिले नए रुप में

ज्यों ज्यों मुँह की कालिक बड़ी

 दोस्ती का रंग कच्चा ही रह गया

 उम्र तो मेरी ढल गयी

पर दिल बच्चा ही रह गया


खुदा बक्श दे उस शक्स को

 उसके हजाऱों अक़्स को

जो मिलता रहा,  पर था जुदा

उसके दिल में बसे हर रश्क को

दिल  आज भी ना माना

वो झूठा था, हां, था वो झूठा,

पर मेरे लिए सच्चा ही रह गया

उम्र तो मेरी ढल गयी

 पर दिल बच्चा ही रह गया


आज आंख मेरी, क्यूं भर आयी है

दगाबाजों से ही दगा खाई है

उम्र के साथ काश बड़े हो जाते

अब होठों पे हरदम मेरे दुहाई है

अब ना साथ है कोई, क्या कोई दिल दुखायेगा

दिल अकेला ही था, अकेला अच्छा ही रह गया

उम्र तो मेरी ढल गयी

 पर दिल बच्चा ही रह गया


श्यामिली


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