जिंदगी यूं, गुज़र गई

 वक्त की क्या, बात कहें

जिंदगी यूं, गुज़र गई

मुट्ठी जब, खोल के देखी

उम्र रेत सी, फिसल गई


कैसी साकी की, चाहत थी

जो पलभर में, मचल गई

प्यास भी, भुज ना पाई

नीयत उसकी फिर, बदल गई


पलक भी अपनी, झपकी ना थी

नींद कैसे फिर, उड़ गई

उम्मीद तो न, की थी कोई

मंज़िल कैसे फिर, मुड़ गई


समझ नही, आया मुझको

खता कौन-सी, थी हो गईं

किधर गायब, हुए जज़्बात

कैसे मोहब्बत, सो गई


सब किया, सब कहा

बदमज़गी क्यूं, हो गई

काफ़िरों का क्या, ताबीर-ए-ख़्वाब

ज़िंदगी फ़िर, दलदल हुई


पलक झपकते, दिन ढला 

पलक झपकते, शाम गई 

साही सूखने, से भी पहले

कहानी अपनी, फ़िर बदल गई

मुट्ठी जब, खोल के देखी

उम्र रेत सी, फिसल गई


श्यामिली


Comments

  1. Wowww this is incredibly written. 👌👌👌👌💗💓

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  2. Itne sunder urdu ke jajbat aap kahan se lati hai..

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  3. Very well said...nice lines..describing life...

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  4. स्याही सूखने से भी पहले , अपनी कहानी बदल गई । Wah madam ,kya baat , bahut hi umda ,🙏🙏🙏

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