विरह

 

तुमसे मिलने को

दिल तरसता है

जान लेने को

सावन बरसता है

ना जाने ये अश्क़

क्यूं बहते है

जाने क्या क्या

हमसे कहते है

काश जिंदगी यूँ ही

कटती नहीं

इतने हिस्सों में

बटती नहीं

ये दिल

यूँ ना उदास होता

तुम्हारा साया ही गर

पास होता

तुमसे मिलने को

साँसें क्यूं अटकी है

मुस्कुराहटो के  पीछे

सूरत ये लटकी है

हरदम हम

तुमको देखते रहे

तुम इधर उधर

आँखें सेंकते रहे

हम समझे

मीलों का रास्ता होगा

क्या मालूम था,

ना तुमसे वास्ता होगा

देख हर कोई अब

मुझपे हस्ता है

तुम्हारी दिल्लगी के आगे

हमारा विरह सस्ता है

 

फ़िर भी


जब जब ये  

सावन बरसता है

तुमसे मिलने को

दिल तरसता है

 

श्यामिली

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