विदाई

 

समझ गर जो पाओ,

तो तुम समझ जाना

जो मै, फिर से रुठूँ,

तो मुझको मनाना

जमाने का यूँ तो,

ठुकराया हुआ हूँ

डगमगाऊँ अगर मैं,

तो मुझको बचाना

 

हाँ सच है कि,

ना साथ, मैंने दिया है

अच्छा ही किया है,

जो, तूने किया है

यूँ तो रूह तक ये घाव

फैला हुआ है

हो सके तो इसपर

कुछ मरहम लगाना

जो मै, फिर से रुठूँ,

तो मुझको मनाना

 

ना की कुछ वफा

पर घायल किया है

तेरी हर अदा ने

फिर भी, कायल किया है

जो धुआं धुआं है

बुझती आग भी होगी  

अगर हो सके

फिर से ताप बढ़ाना

जो मै, फिर से रुठूँ,

तो मुझको मनाना

 

ना जी भर के देखा

ना सजदे का वक्त था

डगर थी अंगारों की

मौसम भी कम्बक्त था

थी आवाज़ आई

लगा तुमने पुकारा

अगर सुन तुम पाओ

मेरी आहों को सुनना

आखिरी मरतबा

मुझको कान्धा लगाना

आखिरी मरतबा

मुझको कान्धा लगाना

 

श्यामिली


Comments

  1. "Aakhiri bar mujhko kandha lagana "bahut khubsurat line 🙏🙏🙏

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

प्रेम

परिवर्तन

Stress Stress Stress