कह गए

 जो ना कहना था,

हम कह गए

बिना सुने,

फिर भी, वो रह गए

ना मन की

मन में रही,

ना बयां

की गई  

आँखों से,

कह भी दिया

मगर अनसुने, 

अल्रफ़ाज़ रह गए

जो ना कहना था,

हम कह गए

 

बादल जैसे

छटने लगे है

धुप जैसे

खिलने को है

शाम का किया,

क्यूँ इंतज़ार

अपने ज़ज्बात,

बारिश में बह गए

जो ना कहना था,

हम कह गए

 

जिधर देखो

मीलों तक कारवां है

साथ है हर कोई

पर फिर भी जुदा है

ऐसे में क्यूँ आस,

उसने बढाई   

हम अपनी

तन्हाई में खुश थे

अब महफ़िल में

तन्हा रह गए

जो ना कहना था,

हम कह गए

 

क्या मालूम,

ना था मुझको  

मौसमी ही था

हर सहारा मुझको

दिल की कीमत

क्या बाज़ार में लगेगी

कितनों के

ख्वाब

ये सोच

बिन बिके ही रह गए

जो ना कहना था,

हम फिर से कह गए

 

 

श्यामिली 

Comments

  1. "अनसुने अल्फाज़ रह गए " very deep thaught Mam , iits very touchy

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  2. Mam really nice 🙏👍👍👍

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  3. Awesome Heart Touching Poetry......👌🏼👌🏼

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  4. Behad Lajawab
    Keep it up Respected mam jee
    Hare
    Krishna

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  5. Behatreen 👏👏👏

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  6. Very nice👏👏👏

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  7. Great thought provoking creation

    ReplyDelete

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